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बदले हुए राजनैतिक हालातों में लोकसभा में ब्राह्मण उम्मीदद्वारों पर दांव लगाने की तैयारी में मायावती

बदले हुए राजनैतिक हालातों में लोकसभा में ब्राह्मण उम्मीदद्वारों पर दांव लगाने की तैयारी में मायावती

अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही बहुजन समाज पार्टी को एक बार फिर मजबूत करने के लिए मायावती ने इस बार नया फॉर्मूला तय कर लिया है। गठबंधन के बाद पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रही मायावती ने बीजेपी के नए दांव और प्रियंका की राजनीति में आने के बाद अपने सभी टिकटों पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है। बीएसपी सुप्रीमो एक-एक सीट पर दोबारा विचार कर रही हैं, जिसमें जातीय आंकड़ों का ख़ास ध्यान रखा गया है। बीएसपी के सूत्रों की माने तो मायावती इस बार टिकट बंटवारे में सबसे ज्यादा फोकस जातीय गणित को दे रही हैं, प्रियंका गांधी की एंट्री के बाद माया के जोर अब ब्राह्मण वोटरों पर सबसे ज्यादा है, बदले हुए हालात में पार्टी कई सीटों पर अपने प्रभारी जिस आम तौर पर बीएसपी में चुनाव के समय प्रत्याशी बना दिया जाता है, उन्हें बदलने की तैयारी कर रही है, टिकट बंटवारे में जोनल को-ऑर्डिनेटर की रिपोर्ट के साथ-साथ पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र की भूमिका काफी अहम हो गई है। सूत्रों की मानें तो मायावती इस बार दलितों के बाद सबसे ज्यादा भरोसा ब्राह्मणों पर करने जा रही हैं। 
कभी सवर्णों के विरोध पर राजनीतिक शुरू करने वाली मायावती दलित के बाद सबसे ज्यादा भरोसा ब्राह्मणों पर क्यों करती हैं, इसका सीधा जवाब सतीश चन्द्र मिश्रा हैं। दरअसल 2004 में बीएसपी के महासचिव बनाए जाने के बाद से सतीश चन्द्र मिश्रा, बीएसपी सुप्रीमो के सबसे बड़े संकट मोचक माने जाते है। चाहे वह मामला जांच एजेंसियों का हो या कोर्ट कचहरी का, सतीश चन्द्र मिश्रा हर जगह मायावती की ढाल बनकर खड़े रहे हैं। 2007 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी को अकेले दम पर सत्ता में लाने का श्रेय भी सतीश चन्द्र मिश्रा के दलित-ब्राह्मण गठजोड़ के गणित को ही जाता है। ब्रह्मण-दलित वोटों का गणित ही था कि बीएसपी को इस चुनाव में 30 फीसदी से ज्यादा वोटों के साथ 206 सीटें मिलीं। बात दे कि मुस्लिम वोट कभी भी बीएसपी का परंपरागत वोट बैंक नहीं रहा है। आंकड़ों पर गौर करे तो 1993 से लेकर 2014 तक उत्तर प्रदेश में मुख्य लड़ाई एसपी और बीएसपी में ही रही है। इसकारण मुस्लिम अधिकांश मौकों पर सपा के साथ खड़ा नजर आया है। गठबंधन के बाद मायावती को उम्मीद थी कि मुस्लिम वोट पूरी तरह बीएसपी में आ जाएगा लेकिन सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर बीएसपी में मुस्लिम किस चेहरे पर भरोसा करें क्योंकि बीएसपी के सबसे पुराने मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अब पार्टी का साथ छोड़ा दिया है। इसके बाद मायावती के पास मुस्लिम चेहरा नहीं जिस पर भरोसा कर सके। प्रियंका गांधी के आने के बाद केवल बीजेपी विरोध के नाम पर मुस्लिम वोट मिलने का दावा अब कमजोर पड़ता नज़र आ रहा है। 
सूत्रों के मुताबिक,9 से 10सीटें ब्राह्मण उम्मीदवारों के खाते में आ सकती हैं, 10 से 11 दलित चेहरे हाथी पर सवार होकर 2019 का आम चुनाव लड़ने वाले हैं, वहीं मुस्लिम उम्मीदवारों के खाते में बीएसपी की 8 से 9 सीटें आएंगी, 3 से 4 राजपूतों को टिकट दिया जा सकता है। जबकि,7 से 8 ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया गया है। पूरब में 1-2 भूमिहार चेहरे पर भी बीएसपी दांव लगा सकती है। दरअसल समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बाद बीएसपी सुप्रीमों मायावती अल्पसंख्यक वोटों को लेकर आश्वस्त थी लेकिन प्रियंका की एंट्री के बाद बीएसपी को अल्पसंख्यक वोटों पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल हो रहा है। 

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