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लोकसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएगा भारत-पाक तनाव

लोकसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएगा  भारत-पाक तनाव

 पुलवामा हमले के बाद भारत की एयर स्ट्राइक और उसके बाद भारत-पाक सीमा पर पैदा हुए तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में भारी बढ़ोतरी हुई है। जीडीपी घटना, बेरोजगारी और किसानों की बदहाली जैसे मुद्दे फिलहाल पीछे चले गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एयर स्ट्राइक को अपने चुनाव प्रचार का मुद्दा बना रहे हैं और विपक्ष इस पर जिस तरह से प्रतिक्रिया कर रहा है, उससे साफ हो गया है कि यह मुद्दा आम चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है।
पीएम की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही देश एक बार फिर से विशुद्ध राजनीतिक मुद्दे की तरफ लौट रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और भारत-पाक के बीच बढ़ते तनाव जैसे मुद्दों ने केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को बढ़त दिलाई है। भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक तीन युद्ध हो चुके हैं। इनके बीच पहला युद्ध 1965 में हुआ था। इसके बाद 1971 और 1999 में भी दोनों पड़ोसियों के बीच युद्ध हुआ था। 
सन 1965 युद्ध के 2 साल बाद हुए 1967 चुनाव में कांग्रेस की 361 सीटें घटकर 283 हो गई थीं। सन 1971 के युद्ध के 8 महीने बाद चुनाव हुए और इंदिरा गांधी की सत्ता में जोरदार वापसी हुई थी। इन तीन युद्धों में सिर्फ 1999 में करगिल में हुआ युद्ध ही था, जिसके बाद हुए चुनाव में स्थिति बहुमत से थोड़ी अलग रही। करगिल युद्ध मई से जुलाई 1999 तक चला और इसके बाद हुए चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सीटों में कुछ खास इजाफा नहीं हुआ, लेकिन उसके मत प्रतिशत में बढ़ोतरी दर्ज की गई। 
सन 1999 में करगिल युद्ध के ठीक बाद हुए लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा को 182 सीटें ही मिलीं। यह 1998 लोकसभा चुनाव के सीट संख्या के हिसाब से बराबर थी। हालांकि, वोट फीसदी में 1.84 फीसदी की वृद्धि जरूर हुई। इसका सामान्य अर्थ यह निकाला जा सकता है कि वोट प्रतिशत में हुआ इजाफा करगिल युद्ध में विजय के कारण वाजपेयी सरकार की ओर सकारात्मक अंदाज में बदला था। 
दिलचस्प बात यह है कि करगिल युद्ध में बीजेपी का कुल वोट शेयर बढ़ा, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह 9 फीसदी तक घट गया। 1998 के चुनाव में भाजपा को जहां 57 लोकसभा सीटें मिली थीं, वे घटकर 29 रह गईं। भाजपा को कुछ दूसरे बड़े राज्यों जैसे पंजाब में भी सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था। इन दोनों ही बड़े प्रदेशों में 2 महीने चले युद्ध और विजय की भावना का कुछ खास सकारात्मक असर नहीं पड़ा। इसका यह अर्थ निकाला जा सकता है कि इन दोनों राज्यों में करगिल युद्ध विजय कोई मायने नहीं रहा। 
करगिल युद्ध विजय का प्रभाव जनमानस पर नहीं पड़ने की बात से भी सभी विश्लेषक पूरी तरह सहमत नहीं है। इस तर्क के विरोध में दूसरा तर्क है कि करगिल युद्ध के दौरान वाजपेयी सरकार कोई स्थिर सरकार नहीं थी, बल्कि उसे जोड़-तोड़ की कामचलाऊ सरकार कहा जा रहा था। इसके बावजूद कोई खास उपलब्धि नहीं होने के बाद भी 1999 चुनावों में भाजपा की सीटें कम नहीं हुई, यह अपने आप में एक बड़ा संकेत है। दूसरी ओर कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भाजपा की सीटें कम नहीं हुईं और वह उस वक्त तक में भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। 
इस प्रदर्शन का बड़ा क्रेडिट शानदार वक्ता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व को भी जाता है। कुछ राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि कांग्रेस अपनी राजनीति में ही उलझी थी और पार्टी के बागी नेताओं से जूझ रही थी। इस वक्त के हालात देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर रैली और सार्वजनिक कार्यक्रम में एयर स्ट्राइक का जिक्र करते हैं। विपक्ष एयर स्ट्राइक के सबूत मांग रहा है और पीएम विपक्ष पर इसे लेकर हमला बोल रहे हैं। इन स्थितियों को देखते हुए कह सकते हैं कि यह मुद्दा लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने वाला साबित होगा। 

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