पूंजी बाजार को नियंत्रित करनेवाली संस्था सेबी ने सरकार से कंपनीज एक्ट में संशोधन की मांग की है। सेबी ने सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि अगर उसकी ओर से किसी कंपनी के डायरेक्टर को अयोग्य घोषित किया जाता है तो वह तुरंत अपनी पोस्ट से हट जाए। अरबों रुपये के लोन पर डिफॉल्ट करने वाले कारोबारी विजय माल्या के ऐसा न करने के कारण सेबी ने एक्ट में संशोधन करने की मांग उठाई है। कंपनीज एक्ट के तहत अगर किसी डायरेक्टर को एक कोर्ट या ट्राइब्यूनल के ऑर्डर में अयोग्य घोषित किया गया है तो उसकी पोस्ट खाली हो जाएगी। लेकिन एक्ट में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) के ऑर्डर की अलग से जानकारी नहीं है। देश में लिस्टेड कंपनियों के रेगुलेशन की निगरानी सेबी के पास है।
सेबी ने एक प्रपोजल में कहा है कि कंपनीज एक्ट में यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि अगर सेबी की ओर से अयोग्य घोषित करने वाला ऑर्डर दिया जाता है तो व्यक्ति को तुरंत अपनी पोस्ट छोड़ देनी चाहिए। अधिकारियों ने बताया कि फाइनेंस मिनिस्ट्री प्रस्तावित संशोधन को लेकर सहमत है और उसने सेबी से इसे अपने बोर्ड से स्वीकृत कराने के बाद कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री के पास भेजने के लिए कहा है, जो कंपनीज एक्ट के लिए नोडल मिनिस्ट्री है। सेबी ने अपने प्रपोजल में जनवरी 2017 में दिए गए अंतरिम आदेश का जिक्र किया है जिसके जरिए उसने माल्या और छह अन्यों पर किसी लिस्टेड कंपनी में डायरेक्टर बनने पर अगले निर्देश तक रोक लगाई थी। इसी ऑर्डर के जरिए माल्या और अन्यों पर सिक्योरिटीज मार्केट में ट्रांजैक्शन करने पर रोक भी लगाई गई थी। इससे पहले माल्या की अगुवाई वाले बिजनेस ग्रुप की कंपनी रही यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड में कथित तौर पर फंड के डायवर्जन की जांच हुई थी। माल्या ने बाद में यह बिजनेस ग्लोबल शराब कंपनी डियाजियो को बेच दिया था। हालांकि, माल्या ने ऑर्डर का पालन नहीं किया था और वह महीनों तक अपने ग्रुप की एक अन्य लिस्टेड कंपनी यूनाइटेड ब्रुवरीज लिमिटेड के डायरेक्टर बने रहे थे। सेबी के ऑर्डर के बाद माल्या ने सेबी की निंदा भी की थी। उनका कहना था कि फंड डायवर्जन के आरोप गलत हैं और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
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लोन डिफाल्टर माल्या के कारण सेबी ने की कंपनी कानून में परिवर्तन की मांग