अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में मध्यस्थता हो या नहीं इसपर बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय में करीब एक घंटे तक सुनवाई हुई और इसके बाद इसपर फैसला सुरक्षित रख लिया गया। इस दौरान निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के सभी वकीलों ने मध्यस्थता के फार्मूले का विरोध किया। इस मामले में एक पक्षकार उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मध्यस्थता को अव्यवहारिक बताया।
जबकि, मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा मध्यस्थता के पक्ष में रहे। सुनवाई के दौरान हिंदू महासभा की दलील पर सर्वनोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा जब वैवाहिक विवाद में कोर्ट मध्यस्थता के लिए कहता है तो किसी नतीजे के बारे में नहीं सोचता। अदालत बस एक विकल्प के रूप में इस उपाय को आजमाना चाहती है। हम यह नहीं सोच रहे हैं कि कोई किसी चीज का त्याग करेगा। हम जानते हैं कि यह आस्था का मसला है।
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा हमें आश्चर्य है कि विकल्प आजमाए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है? अदालत ने कहा अतीत पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, पर हम बेहतर भविष्य की कोशिश तो कर ही सकते हैं। न्यायमूर्ति बोबड़े ने कहा बाबर ने जो किया उसे बदल नहीं सकते। हमारा मकसद विवाद को सुलझाना है। इतिहास की जानकारी हमें भी है। उन्होंने कहा मध्यस्थता का मतलब किसी पक्ष की हार या जीत नहीं है। यह दिल, दिमाग, भावनाओं से जुड़ा मामला है। हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं।
न्यायमूर्ति बोबड़े ने कहा जब मध्यस्थता की प्रक्रिया चल रही हो तो उसमें क्या कुछ चल रहा है, यह मीडिया में नहीं जाना चाहिए। जस्टिस बोबड़े ने मध्यस्थता की विश्वसनीयता को बरकरार रखने पर जोर देते हुए कहा जब अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता चल रही हो तो इसके बारे में खबरें न लिखी जाएं और न ही दिखाई जाएं। हालांकि, हम मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगा रहे, लेकिन उसे ध्यान रखना चाहिए कि मध्यस्थता का मकसद किसी भी सूरत में प्रभावित नहीं होना चाहिए।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा यह सिर्फ पक्षों का विवाद नहीं है। दोनों तरफ करोड़ों लोग हैं। मध्यस्थता में जो निकलेगा, वह सबको मान्य कैसे होगा। जिसपर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा आप आदेश दे देंगे तो सबको मानना होगा। धवन ने कहा हम चाहते हैं मध्यस्थता बंद कमरे में हो ताकि बातें लीक न हों। हम मध्यस्थता के लिए जाने को तैयार हैं। निर्मोही अखाड़ा भी तैयार है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि मध्यस्थता के लिए ज़रूरी है कि समझौता सभी पक्षों को मान्य हो। मामला करोड़ों लोगों से जुड़ा हुआ है।
हिंदू पक्ष के हरिशंकर जैन ने कहा कि कोर्ट मध्यस्थता से पहले सभी पक्षों की बात सुने, यह नियम है। इसी दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा अगर हम भूमि विवाद पर फैसला दें तो क्या वो सबको मान्य हो जाएगा? इस पर वकील और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अयोध्या एक्ट से वहां की सारी ज़मीन का राष्ट्रीयकरण हो चुका है। नरसिंह राव सरकार कोर्ट में वचन दे चुकी है कि कभी भी वहां मंदिर का सबूत मिला तो जगह हिंदुओं को दे दी जाएगी। कोर्ट ने इसे अपने फैसले में दर्ज किया था। वहां सुलह करने जैसा कुछ नहीं।
रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि मध्यस्थता के पहले बहुत प्रयास हुए। अयोध्या रामजन्मभूमि है, इस पर कोई सुलह मुमकिन नहीं है। सरकार देख ले कि मस्जिद के लिए कहां जगह दी जा सकती है। समझौते का इकलौता बिंदु यही हो सकता है। मध्यस्थता पर जाने की कोई जरूरत नहीं है। हिन्दू महासभा मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है, यह राम जन्मभूमि का मसला है और यह कोई ज़मीन का विवाद नहीं है। किसी को भी सुलह कर लेने का अधिकार नहीं है। हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन मध्यस्थता का विरोध कर रहे हैं।
दरअसल, पिछले हफ्ते अयोध्या मामले की सुनवाई यूपी सरकार की तरफ से कराए गए दस्तावेजों के अनुवाद पर विवाद के चलते अटक गई थी। मुस्लिम पक्ष ने मांग की थी कि वह दस्तावेजों को देखकर बताएगा कि अनुवाद सही है या नहीं। कोर्ट ने इसकी इजाज़त देते हुए सुनवाई टाल दी थी। इसी दौरान बेंच के सदस्य जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा था हम मध्यस्थता पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
अगर मामले से जुड़े पक्षों के साथ बैठने से समाधान की एक फीसदी भी गुंजाइश है, तो ऐसा ज़रूर होना चाहिए। बेंच के इस सुझाव पर मामले के मुख्य पक्षकारों में से एक, निर्मोही अखाड़ा ने सहमति जताई थी। मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने भी कहा था कि अगर बंद कमरे में गंभीरता से चर्चा हो, इस दौरान हुई बातों को मीडिया में लीक न किया जाए तो हो सकता है कि कुछ नतीजे निकलें। हालांकि, रामलला विराजमान पक्ष की तरफ से मध्यस्थता को बेकार की कोशिश कहा गया था।
नेशन
मुस्लिम पक्ष, निर्मोही अखाड़े को छोड़ बाकी सभी ने मध्यस्थता फार्मूले का किया विरोध, फैसला सुरक्षित