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झारखंड विधानसभा चुनाव में नतीजे आने शुरू

झारखंड विधानसभा चुनाव में नतीजे आने शुरू

झारखंड विधानसभा चुनाव में नतीजे आने शुरू
त्रिशंकु विधानसभा के आसार
   झारखंड में 81 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। यदि इस राज्य में भाजपा एक बार फिर से सत्ता हासिल करती है तो राज्य के गठन के बाद यह पहला मौका होगा, जब कोई सरकार वापसी करेगी। मगर अभी तो ऐसा होता नहीं दिख रहा है। झारखंड में 81 विधानसभा सीटों पर चुनाव नतीजों के रुझान आने शुरू हो गए हैं। वोटों की गिनती शुरू होने के बाद सभी सीटों पर रुझान सामने आए हैं, जिनमें से झारखंड मुक्ति मोर्चा 32 सीटों पर आगे है, जबकि भाजपा  को 34 सीट पर बढ़त मिली है। आजसू 7 तो तीन सीट पर झारखंड विकास मोर्च आगे है। पूरी तस्वीर त्रिशंकु विधानसभा की बन रही है। 81 सीटों पर कुल 1215 उम्मीदवार चुनावी समर में उतरे थे। बता दें कि सीएम के तौर पर 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले भी रघुबर दास पहले मुख्यमंत्री हैं। 
बहुमत का आंकड़ा 42
सूबे में बहुमत का आंकड़ा 42 सीटों का है, ऐसे में एक-एक सीट काफी अहम हो गई है। 2014 में आजसू के साथ गठबंधन करने वाली बीजेपी इस बार अकेले ही मैदान में उतरी थी। दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा, आरजेडी और कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इसके अलावा बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा भी अहम प्लेयर हो सकती है। 
रघुबर दास की सीट पर नजर
इस बीच सबसे ज्यादा नजर सीएम रघुबर दास की सीट पर रहेगी। जमशेदपुर ईस्ट सीट से उतरे रघुबर दास के खिलाफ उनकी ही पार्टी के बागी मंत्री सरयू चुनाव में उतरे थे। इसके अलावा कांग्रेस के चर्चित प्रवक्ता गौरव वल्लभ भी इसी सीट से मैदान में थे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि त्रिकोणीय मुकाबले में बाजी किसके हाथ लगती है।
इस बार अकेले ही चुनाव में उतरी थी भाजपा
2014 में आजसू, जेडीयू और एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लडऩे वाली भाजपा इस बार अकेले ही चुनाव में उतरी थी। ऐसे में यह चुनाव उसके लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है। 
क्या लोकसभा चुनाव के जादू को बरकरार रख पाएगी भाजपा 
झारखंड में आज तय होना है कि सीएम रघुबर दास के नेतृत्व में भाजपा अपनी सत्ता बरकरार रख पाती है या फिर बाजी पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की अगुआई वाले महागठबंधन के हाथ लगती है। 81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 41 सीटों की दरकार है। सिर्फ 6-7 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में सूबे में भाजपा ने 50 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और एक सीट को छोड़कर राज्य की सभी सीटों पर कब्जा किया था। अगर इस आंकड़े को देखें तो भाजपा का रास्ता आसान होना चाहिए लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटिंग का अलग-अलग पैटर्न भाजपा के खिलाफ जाता है। साल 2000 में वजूद में आने के बाद से ही झारखंड राजनीतिक अस्थिरता का दूसरा नाम रहा है। 19 सालों के राज्य के इतिहास में रघुबर दास इकलौते ऐसे सीएम रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। इस बार ज्यादातर एग्जिट पोल्स में त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान लगाया गया है।
पिछले चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन
2014 के पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में कुल 81 सीटों में से बीजेपी ने 37 पर जीत ( 31.3 प्रतिशत वोटशेयर) हासिल की थी। आजसू ने 3.7 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 5 सीटें जीती थीं। झारखंड मुक्ति मोर्चा का वोटशेयर 20.4 प्रतिशत था और पार्टी की झोली में 19 सीटें आई थीं। बाबू लाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा ने करीब 10 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, बाद में उसके 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस 10.5 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 7 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। 6 सीटें अन्य के खाते में गई थीं। भाजपा के सामने सत्ता को बरकरार रखने की चुनौती है। हालांकि, भाजपा के लिए यह आसान नहीं है। वैसे तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी-आजसू गठबंधन ने सूबे की 14 में से 13 सीटों पर परचम लहराया था लेकिन झारखंड में अलग-अलग चुनाव का वोटिंग पैटर्न अलग-अलग है। भाजपा के लिहाज से बात करें तो झारखंड में पार्टी अबतक कभी भी लोकसभा चुनाव में मिले वोटों को विधानसभा चुनाव तक पूरी तरह सहेज कर नहीं रख पाई है। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 33 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन उसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर गिरकर 23.57 प्रतिशत हो गया। इसी तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 27.53 प्रतिशत वोट मिले थे तो उसी साल विधानसभा चुनाव में महज 20 प्रतिशत वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को झारखंड में 40 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन विधानसभा चुनाव में उसका वोट करीब 9 प्रतिशत घट गया।
महागठबंधन को उम्मीद
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने झारखंड में 51 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को विधानसभा चुनाव में न दोहरा पाने की बीजेपी की कमजोरी महागठबंधन के लिए उम्मीद की तरह है। महागठबंधन की पूरे दमखम और उत्साह के साथ चुनाव लड़ा। हेमंत सोरेन के साथ उनके पिता शिबू सोरेन ने भी चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाला। चुनाव प्रचार के दौरान सोरेन लगातार बीजेपी सरकार पर हमलावर रहे और उसे आदिवासी विरोधी ठहराते रहे। आदिवासी समुदाय में कभी बेहद मजबूत पकड़ रखने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा को इस बार इस समुदाय से काफी उम्मीदें हैं। सूबे की कुल आबादी में करीब 26 से 27 प्रतिशत आदिवासी हैं। कुल 81 में से 28 सीटें उनके लिए आरक्षित हैं। मुख्यमंत्री रघुबर दास गैर-आदिवासी हैं और जेएमएम चुनाव में इसको अपने पक्ष में भुनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है। 

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