प्लास्टिक क़े बढ़ते उपयोग से अब नया संकट खड़ा होमो वाला है। अंतरराष्ट्रीय गैरसरकारी संगठन वर्ल्ड वाइड फंड द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक प्लास्टिक प्रदूषण दोगुना हो जाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र में 1950 से 2016 के बीच के 66 वर्षों में जितना प्लास्टिक जमा हुआ है, उतना अगले केवल एक दशक में जमा हो जाएगा। इससे महासागरों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। समुद्र में 2030 तक प्लास्टिक दहन पर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन तिगुना हो जाएगा, जो हृदय संबंधी बीमारियों को तेजी से बढ़ाएगा। हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से महज 20 फीसद ही रिसाइकिल हो पाता है। 39 फीसद जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है और 15 फीसद जला दिया जाता है। प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा 2030 तक तिगुनी हो जाएगी, जिससे हृदय रोग के मामले में तेजी से वृद्धि होने की आशंका चिंता का सबब बनी हुई है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का लक्ष्य 2030 तक स्ट्रॉ और पॉलिथिन बैग जैसी सिर्फ एक बार प्रयोग की जा सकने वाली प्लास्टिक की वस्तुएं को इस्तेमाल से हटाने का है। निम्न उत्पादन लागत होने की वजह से हर साल बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का उत्पादन होता है जिसमें से आधी मात्रा को तीन साल इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है और प्लास्टिक की नई चीजों का इस्तेमाल होने लगता है। रिसाइकिल में कमी और अधिक मांग के चलते हर साल प्लास्टिक उत्पादन की मात्रा बढ़ती जा रही है।
हर साल तकरीबन 10.4 करोड़ टन प्लास्टिक मलबा समुद्र में समा जाता है। 2050 तक समुद्र में मछली से ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े होने का अनुमान है। प्लास्टिक के मलबे से समुद्री जीव बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। कछुओं की दम घुटने से मौत हो रही है और व्हेल इसके जहर का शिकार हो रही हैं। प्रशांत महासागर में द ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच समुद्र में कचरे का सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां पर 80 हजार टन से भी ज्यादा प्लास्टिक जमा हो गया है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अगले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा की बैठक से पहले, प्लास्टिक प्रदूषण पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि के लिए सभी देशों को बुला रही है। इसका लक्ष्य सांस लेने पर शरीर के अंदर पहुंचने वाले प्लास्टिक के बेहद सूक्ष्म कण और भोजन व पानी के जरिये पेट में जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक टुकड़ों से लेकर एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की मांग को 2030 तक 40 फीसद तक घटाना है। प्लास्टिक एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए वैश्विक समाधान की जरूरत है। यही कारण है कि महासागरों में समाने वाले प्लास्टिक मलबे पर कानूनी रूप से नियंत्रण के लिए संयुक्त राष्ट्र से समझौते की कोशिश की जा रही है।
नेशन
समुद्रों में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण 2050 तक हो जाएगा खतरनाक