दो साल की उम्र से छोटे बच्चे मोबाइल और टैब जैसे डिजिटल डिवाइस पर बहुत ज्यादा समय बिताने लगे हैं। वैज्ञानिक ने इस बात पर बडी चिंता जताई है कि डिजिटल स्क्रीन के सामने बिताया जाने वाला इन बच्चों का समय पिछले 17 साल में पहले से दोगुना हो गया है। बाल चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है। उन्होंने बच्चों के पैरंट्स को सुझाव दिया है कि वे बच्चों के सोने के समय से एक घंटा पहले से ही एक किस्म का डिजिटल कर्फ्यू लगा दें, मतलब मोबाइल और टैब जैसी चीजों से दूर रखें। इसमें इस बात पर शोध किया गया है कि पिछले कुछ दशकों में छोटे बच्चे मोबाइल स्क्रीन के सामने कितनी देर अपना समय बिता रहे हैं। रिसर्च में उस समय की तुलना की गई है जब मोबाइल इतने आम नहीं थे इसके लिए 1997 का साल चुना गया और इसकी तुलना 2014 से की गई। 1997 में 1,327 बच्चों और 2014 में 443 बच्चों के आंकड़ों को शामिल किया गया।
नतीजों में देखा गया कि 1997 में अमेरिका में दो साल से छोटे बच्चे हर दिन लगभग मोबाइल स्क्रीन पर औसतन 1.32 घंटे बिता रहे थे। 2014 में यह औसत बढ़कर लगभग दो गुने से भी ज्यादा यानि 3.05 हो गया। यह बदलाव महज 17 साल में देखने में आया। वहीं जब तीन से पांच साल के बच्चों के बीच तुलना की गई तो पता चला कि इन 17 बरसों में मामूली बढ़ोतरी हुई है। 1997 में इस आयु वर्ग के बच्चे हरदिन लगभग 2.3 घंटे मोबाइल देख रहे थे, 2014 में यह समय बढ़कर तीन घंटे प्रतिदिन के आसपास ही हुआ। डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ पॉलिसी ऐंड मैनेजमेंट में काम करने वाले असिस्टेंट प्रफेसर वेईवेई चेन बच्चों में मोबाइल स्क्रीन पर इतना ज्यादा समय बिताने से चिंतित हैं। वह कहते हैं, 'हमारी स्टडी के नतीजे चौंकाने वाले हैं, इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मोबाइल हर जगह मौजूद हैं, जबकि टेलिविजन आज भी सबसे आम जरिया है जिसके माध्यम से छोटे बच्चे अपनी जानकारियां जुटाते हैं।' मियामी, फ्लोरिडा स्थित स्टम्पेल कॉलेज में असिस्टेंट प्रफेसर जेसिका एल एडलर कहती हैं, 'इतनी कम उम्र के बच्चों के स्क्रीन टाइम का बढ़ना एक अहम मुद्दा है।
हमारी स्टडी इन सामान्य नतीजों की पुष्टि करता है कि शिक्षा, आय का स्तर जैसे कारकों और बच्चों में बढ़ते स्क्रीन टाइम में एक संबंध है।इस रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि ऐसे बच्चों को, जिन्हें स्पेशल एजुकेशन की जरूरत है या जिनमें मानसिक, शारीरिक या दूसरी दिक्कतें हैं उनके साथ इंटरनेट की दुनिया में होने वाले दुर्व्यवहार का जोखिम बढ़ जाता है। हाल के वर्षों में मीडिया के इस्तेमाल और डिवाइस से जुड़े आंकड़े एक बार मिल जाएं तो इस पर भी शोध करने की जरूरत है।' इंटरनेट मैटर्स, यूथवर्क्स और यूनिवर्सिटी ऑफ किंग्सटन की एक और रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि ये बच्चे बहुत नाजुक उम्र में हैं और ये जिस माहौल में बढ़ रहे हैं ऐसे में बिना पर्याप्त इंटरनेट सुरक्षा की जानकारी के इनके ''डिजिटल स्पेस में खो जाने' का खतरा है।
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छोटे बच्चे डिजिटल डिवाइस पर बिता रहे ज्यादा समय -वैज्ञानिकों ने इस बात पर जताई चिंता