मकर संक्रांति पर तिल और खिचड़ी के दान का महत्व
मकर संक्रांति के दिन का सनातन धर्म में अहम स्थान है संक्रांति वैसे भी सूर्य के उत्तरायण का पर्व है। सूर्य जब राशि परिवर्तिन करते हैं यानी सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में पहुंचने पर मकर संक्रांति मनाई जाती है। यह तिल, गुड़, दही और खिचड़ी का त्योहार है, मकर संक्रांति के दिन स्नान और दान की परंपरा है। वहीं इस दिन कई जगह पितरों को जल में तिल अर्पण भी दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था।
संक्रांति के दिन सुबह सुबह पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। पवित्र नदी में स्नान न कर पाएं तो घर में तिल के जल से स्नान कर सकते हैं। स्नान करने के बाद आराध्य देव की प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद पितरों की आत्मा की शांति के लिए जल में तिल अर्पण करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि स्नान के बाद दान का बहुत महत्व है, इसलिए स्नान के बाद तिल दान अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा गर्म कपड़े, चावल, दूध दही और खिचड़ी का दान करना चाहिए। इस त्योहार पर घर में तिल्ली और गुड़ के लड्डू बनाए जाने की परंपरा है। इसलिए इस दिन भोजन में भी तिल को शामिल करना चाहिए।
तिल व खिचड़ी का दान करने से स्वयं सूर्य प्रसन्न होते हैं। वहीं तिल के दान का संबंध शनिदेव से माना जाता है। मान्यता है कि तिल दान करने से घर में शनिदेव प्रसन्न होते हैं और उनकी घर पर सदैव विशेष कृपा बनी रहती है।
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मकर संक्रांति पर तिल और खिचड़ी के दान का महत्व