उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक पर रोक संबंधी दूसरे अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई से सोमवार को इंनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने वकील रूपक कंसल की याचिका खारिज कर दी। दरअसल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 21 फरवरी को तीन तलाक पर रोक संबंधी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) दूसरा अध्यादेश, 2019, को मंजूरी दी थी। मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश, 2019 के प्रावधानों को बनाए रखने के लिए मोदी सरकार कैबिनेट के द्वारा तीसरी बार अध्यादेश लाया गया है। इसके द्वारा तीन तलाक को अमान्य और गैर-कानूनी करार दिया गया है। इसे एक दंडनीय अपराध माना गया है, जिसके तहत तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के उद्देश्य से लाया गया यह अध्यादेश उन्हें उनके पतियों द्वारा तात्कालिक एवं अपरिवर्तनीय ‘तलाक-ए-बिद्दत के द्वारा तलाक दिए जाने को रोकेगा। इससे संबंधित विधेयक लोकसभा में पिछले साल पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में सहमति न बन पाने के कारण पारित नहीं हो पाया था, जिसकी वजह से सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा था। इसके बाद शीतकालीन सत्र में सरकार ने इस विधेयक में कुछ संशोधन करके इसे लोकसभा से फिर पारित करवा लिया था, लेकिन ऊपरी सदन में यह फिर लटक गया। इसके मद्देनजर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फिर से अध्यादेश लाने का निर्णय लिया था और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा था।
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सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका को किया खारिज