देश में आम चुनाव की घोषणा के एक बाद सोमवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर पार्टी कार्यकर्ताओं और देश के अन्य लोगों को चौंका दिया है। मराठा क्षत्रप की यह घोषणा पिछले सप्ताह दिए गए उनके बयान के ठीक उलट है, जिसमें उन्होंने सोलापुर जिले की माढा सीट से चुनाव लड़ने की बात कही थी। बताया जाता है कि पवार के यू टर्न के पीछे कई सियासी राज छिपे हुए हैं। पवार के चुनाव मैदान से हटने की मुख्य वजह माढा में पार्टी के भीतर अंतर्विरोध और परिवार की अंतर्कलह माना जा रहा है। पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच टकराव चल रहा है। खबर है कि अजित पवार अपने बेटे पार्थ पवार को मावल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाना चाहते थे। लेकिन शरद पवार पहले घोषणा कर चुके थे कि पवार परिवार से सिर्फ दो सदस्य उनकी बेटी सुप्रिया सुले बारामती से और वह खुद माढा से चुनाव लड़ेंगे। पवार ने कहा था कि अगर उनके परिवार के सदस्य ही चुनाव लड़ेंगे, तो कार्यकर्ताओं को मौका कब मिलेगा।
अजित पवार, इसके बावजूद, अपने बेटे पार्थ के लिए समर्थकों के सहारे शरद पवार पर दबाव बनाते रहे। मंगलवार को जब बारामती हॉस्टल में चल रही बैठक के दौरान अजित समर्थकों ने एक बार फिर शरद पवार पर दबाव बनाया, तो उन्होंने खुद को चुनाव मैदान से अलग कर लिया और पार्टी प्रमुख के तौर पर मावल सीट से अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के नुमाइंदे पार्थ के चुनाव लड़ाने की जिद के आगे घुटने टेक दिए। पुणे का बारामती हॉस्टल इस पूरे घटनाक्रम का केंद्र था। सोमवार को शरद पवार एनसीपी के तमाम विधायकों के साथ यहां बैठक कर रहे थे। मुद्दा माढा और मावल लोकसभा सीट पर उत्पन्न अंतर्विरोध को समाप्त करना था। जब पवार इसमें सफल नहीं हुए, तो उन्होंने खुद को चुनावी लड़ाई से अलग कर लिया। शरद पवार ने कहा मैंने अब तक 14 चुनाव लड़े हैं, कभी पीछे नहीं हटा। इस बार भी मैं कार्यकर्ताओं के आग्रह पर माढा से चुनाव लड़ने के लिए राजी हुआ था। लेकिन पार्टी ने अब तक मेरी उम्मीदवारी घोषित नहीं की। इसके बाद मैंने पार्थ की उम्मीदवारी पर परिवार में चर्चा की और नई पीढ़ी को मौका देने का फैसला किया।
कुछ लोग भले ही इसे पवार का चुनाव से पलायन मान रहे हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि पवार ने सुरक्षित दांव खेला है। अपने इस फैसले से पवार ने पार्टी कार्यकर्ताओं को यह संकेत दिया है कि परिवार के दो ही सदस्यों के चुनाव लड़ने की अपनी बात से न डिगते हुए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ली और कार्यकर्ताओं का हक मरने नहीं दिया। दूसरा दांव उन्होंने यह खेला कि माढा में पार्टी की अंतर्कलह से बचने के लिए अपने वचन को ढाल बना लिया। इतना ही नहीं, माढा में घेरने के लिए भाजपा और अन्य दलों द्वारा रची जा रही कोशिशों को भी उन्होंने नाकाम कर दिया। अब पवार माढा में अटकने के बजाय राज्य भर में चुनाव प्रचार कर सकेंगे।
पवार के अचानक चुनाव लड़ने से पीछे हटने को राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भाजपा की पहली जीत बताया है। उन्होंने कहा पवार का चुनाव मैदान से पीछे हटना युति की पहली जीत है। देश में मोदी के पक्ष में वातावरण है। मोदी ने एक बार कहा था कि शरद पवार हवा का रुख भांप लेते हैं। लगता है पवार ने हवा का रुख भांप कर ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। उधर, भारिप बहुजन महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने कहा है कि वंचित बहुजन आघाडी ने माढा लोकसभा सीट से धनगर समाज के नेता विजय मोरे को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, इससे घबराकर ही पवार ने माढा से चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।
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पवार ने यूं ही नहीं लिया यू टर्न, एक तीर से साधे हैं दो निशाने