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मोबाइल और इंटरनेट से बाधित हो रहा विकास 

मोबाइल और इंटरनेट से बाधित हो रहा विकास 

मोबाइल और इंटरनेट से बाधित हो रहा विकास 
आजकल मोबाइल और इंटरनेट के कारण बच्चों में सामाजिकता कम होती जा रही है। इस तरक्की से बचपन भी खासा प्रभावित हो रहा है। कुछ मायनों में ये प्रभाव सकारात्मक है और कुछ मायनों में नकारात्मक। महज दो साल की उम्र में वे मोबाइल, टैबलेट व कंप्यूटर में इस कदर खो जाते हैं कि खुद को आसपास के माहौल से अलग कर लेते हैं। इसका असर उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है।
मानसिक और शारीरिक विकास हो रहा प्रभावित 
विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों में स्मार्टफोन, टैबलेट, आईपैड व लैपटॉप के रूप में 'स्क्रीन एडिक्शन' लगातार बढ़ रहा है और भविष्य में इसका नकारात्क असर पड़ना तय है।
एक साइकियाट्रिस्ट के अनुसार आज बच्चे मानव संबंधों की कीमत पर डिजिटल प्रौद्योगिकी का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका उनके मस्तिष्क पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।'
'इसका असर बच्चों को अपने भावों को नियंत्रित करने की क्षमता पर पड़ सकता है और यह स्वस्थ संचार, सामाजिक संबंधों तथा रचनात्मक खेलों को प्रभावित कर सकता है।
यहां तक कि अमेरिकन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स दो साल तक के बच्चों द्वारा किसी भी प्रकार के स्क्रीन मीडिया और स्क्रीन पर बिताए गए समय को गलत बताता है। बाल मनोविज्ञान के जानकारों के अनुसार 'मानवीय संबंधों की कीमत पर धड़ल्ले से स्क्रीन का इस्तेमाल बच्चों में सामाजिक-संचार कौशल तथा पारिवारिक कर्तव्यों को प्रभावित कर सकता है। 
हाल के अध्ययनों में इस बात का खुलासा हुआ है कि बच्चों में स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में विभिन्न प्रकार के संज्ञानात्मक दोष हो सकते हैं। स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में ऑस्टिन स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) होने का भी खतरा होता है।
एक बच्चे में एएसडी के लक्षण थे। वह केवल आईपैड पर प्रतिबिंबों पर ही प्रतिक्रिया व्यक्त करता था और वह स्क्रीन एडिक्शन से बुरी तरह पीड़ित था। एक प्ले स्कूल में भर्ती कराने के बाद वह धीरे-धीरे ठीक हो गया क्योंकि वह स्क्रीन एडिक्शन के बदले अन्य बच्चों के साथ सामाजिक-भावनात्मक कौशल विकसित करने में कामयाब रहा।
स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में भाषा तथा बोलने की प्रक्रिया के विकास में भी बाधा आ सकती है।
'स्क्रीन एडिक्शन के कारण कई बच्चों में बोलने में परेशानी सामने आई है। बच्चों के आसपास जितने गैजेट होंगे। उनके ऑटिज्म, बोलने में देरी व सामाजिक कौशल में कमी का उतना ही खतरा होगा।

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