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ऑपरेशन ऑल आउट से घाटी के युवाओं को आतंक की राह पर जाने से रोका : सेना - भाषणबाजों पर कसी लगाम व आतं‎कियों के जनाजे पर भीड़ कम कर सेना की रणनीति ने दिखाया असर

ऑपरेशन ऑल आउट से घाटी के युवाओं को आतंक की राह पर जाने से रोका : सेना  - भाषणबाजों पर कसी लगाम व आतं‎कियों के जनाजे पर भीड़ कम कर सेना की रणनीति ने दिखाया असर

 कश्मीर में आतंकवादी बनने की राह पर चलने वाले युवाओं को रोकने और आंतकियों की नई पैदावार तैयार होने पर ‎विराम लगाने के ‎लिए सेना की रणनीति ने रंग दिखाना शुरु कर ‎दिया है। इसके ‎लिए सबसे पहले सेना ने अपने ऑपरेशन ऑल आउट के साथ ही यहां आतंकियों के जनाजे पर भीड़ कम करने और उसमें उनके साथियों की भाषणबाजी पर लगाम कसी जिससे घाटी में आतंकियों का रिक्रूटमेंट भी कम होता नजर आ रहा है। सेना के एक सीनियर अधिकारी के  अनुसार पिछले साल नंवबर में जहां 10 नए आतंकी बने वहीं दिसंबर में 20 युवाओं ने आतंक की राह को चुना । तो यह सेना की सख्त कार्रवाई का ही नतीजा है ‎कि इस साल जनवरी में आतंकियों के रिक्रूटमेंट में और कमी आई और आतंकी अपने साथ 3 नए युवाओं को ही जोड़ पाए। तो फरवरी में आतंकियों की कोशिश बिल्कुल नाकाम रही और फरवरी से अबतक कोई भी नया आतंकी नहीं बना है। पिछले साल कुल 214 युवाओं ने आतंक की राह पकड़ी थी। 
सेना के एक अधिकारी के अनुसार आतंकी युवाओं को  अपना टारगेट बनाते हैं। उन्हें बरगलाने के लिए अपने ही साथियों में से किसी को मोटिवेटर के तौर पर तैयार करते हैं। ये मोटिवेटर्स (भाषणबाज) जगह-जगह जाकर युवाओं के दिमाग में जहर भरते हैं। घाटी में कुछ महीनों पहले तक करीब 25 ऐसे भाषणबाज थे, जिनमें से करीब 18  अलग-अलग मुठभेड़ में मारे गए और बाकी वहां से भाग ‎निकले। इन पर लगाम लगने से युवाओं के आतंक की राह पर जाने में कमी आई है। साथ ही किसी आतंकी के जनाजे में जुटी भीड़ को भी आतंकी अपना संभावित साथी मानते हैं। उन्हें वहां उकसाते हैं और आतंक का साथ देने के लिए कहते हैं। सुरक्षा बलों ने पिछले कुछ वक्त में जनाजों में जुटने वाली भीड़ कम करने के लिए भी कई कदम उठाए हैं। जिसका असर दिख रहा है। सेना सूत्रों के अनुसार आतंकियों के समर्थक वक्त-वक्त पर चलो का नारा देते थे, जिसमें वह लोगों का किसी खास जगह पर एकत्र होने को कहते थे। यहां पहले जहां 3-4 हजार लोग जुटते थे, वहीं फिर 11-12 हजार लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगी। इसमें लोगों को स्नैक्स और खाना दिया जाता था और इस भीड़ के दिमाग में फिर नफरत भरने का काम होता था। लेकिन पिछले कुछ वक्त में इस चलो की कॉल देने वालों और इसका आयोजन करने वालों के बीच फंड को लेकर खींचतान शुरू हुई और अलग-अलग ग्रुप एक ही जिले में अलग-अलग जगह पर चलो की कॉल देने लगे। इससे लोगों में भी कंफ्यूजन हुआ और उनका मोह भी भंग हुआ। साथ ही जो लोग डरकर जाते थे, वह इनकी आपसी खींचतान की वजह से खुद को इस चक्र से बाहर निकाल पाए। अब घाटी में यह ट्रेंड खत्म सा हो रहा है। सेना के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि अगर इसी तरह इन पर लगाम कसती रही तो आतंक की राह पर जाने वाले युवाओं को रोका जा सकेगा। 

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