विधायक जनता व सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करें : लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विधायक जनता व सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करें। बिरला ने कहा कि जनता जिन विधायकों को पांच वर्ष के लिए चुनती है, वे उनकी आशाओं व अपेक्षाओं के रक्षक होते हैं। इसलिए यह जनप्रतिनिधि की जिम्मेवारी होती है कि वह विधायी कार्यों के संदर्भ में कानून बनाए, नीति निर्धारण कर कार्यपालिका के माध्यम से धन का सही उपयोग हो और खर्च पर नियंत्रण कर अपनी भूमिका निभाए। जनता व सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करें। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला हरियाणा विधानसभा सदन में पहली बार चुनकर आए 44 विधायिकों को विधायिका कार्य प्रणाली समझाने के लिए लोकसभा सचिवालय नई दिल्ली के लोकतंत्र के लिए संसदीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा हरियाणा विधानसभा द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम के समापन अवसर पर उपस्थित हरियाणा विधानसभा के सदस्यों व सांसदों को सम्बोधित कर रहे थे।
बिरला ने कहा कि राज्यों के विधानसभा व विधानमण्डल तथा देश की लोकसभा हमारे लोकतंत्र के मंदिर हैं। एक जनप्रतिनिधि जिन आशाओं व अपेक्षाओं के साथ जनता चुनकर भेजती है उन पर खरा उतरने के लिए विधायी कार्यों को पक्ष और विपक्ष तर्क व वितर्क तथा उपयोगी व सार्थक संवाद के माध्यम से पूरा करता है। जनप्रतिनिधियों को लोकतंत्र के इन मंदिरों का संचालय निर्बाध रूप से चले और इसमें किसी भी प्रकार का व्यावधान न हो। उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारियों के असीमित अधिकार भी सीमित हों। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों के विधानसभा व विधानमण्डलों के विधायी कार्यों के संचालन एक जैसे हों। इसके लिए नई दिल्ली, देहरादून व लखनऊ में राज्यों की विधानसभाओं के अध्यक्षों व पीठासीन अधिकारियों की तीन-तीन दिवसीय कार्यशालों का आयोजन लोकसभा सचिवालय द्वारा किया जा चुका है।
राज्यों की विधानसभाओं व विधानमण्डलों के निरंतर घट रही सत्रों की संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए ओम बिरला ने कहा कि जनप्रतिनिधि भी इन सत्रों के दौरान चर्चा व सार्थक संवाद को हंगामे की भेंट चढ़ा देते हैं, जो सही नहीं है। यह देश के लोकतंत्र के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि वे कई देशों का भ्रमण कर चुके हैं, जहां पर सत्र कहीं तो एक वर्ष में 240 दिन, तो कहीं 150 तो कहीं 140 दिन चलते हैं। उन्होंने कहा कि इस दिशा में भारत में परिवर्तन करने की आवश्यकता है और हम जनप्रतिनिधि सामूहिक रूप से इस दिशा में प्रयास कर सत्रों की संख्या बढ़ा सकते हैं और पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा में ऐसा हुआ भी है।
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