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दिल्ली चुनाव:  'आप' पार्टी की राह आसान नहीं? (लेखक - राकेश दुबे/ईएमएस)

दिल्ली चुनाव:  'आप' पार्टी की राह आसान नहीं? (लेखक - राकेश दुबे/ईएमएस)

दिल्ली चुनाव:  'आप' पार्टी की राह आसान नहीं? (लेखक - राकेश दुबे/ईएमएस)
८ फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। कई नेताओं के दल बदलने का सिलसिला जारी हो गया है।  आम आदमी पार्टी की बात करें तो  कुछ नेताओं को बाहर किया तो कुछ अपने आप ही अलग हो गए।  इसके अलावा जो नेता पार्टी से अलग हुए उनमें प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास जैसे बड़े नाम शामिल हैं।  अब आदर्श शास्त्री ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।  आम आदमी पार्टी से अलग हुए नेताओं की लिस्ट में अब आदर्श शास्त्री का नाम भी शामिल हो गया है।
 बता दें कि पार्टी की तरफ से आदर्श शास्त्री को द्वारका सीट से टिकट मिला था, लेकिन वह कांग्रेस के साथ चले गए।  ये कोई पहला मौका नहीं है जब किसी नेता ने आम आदमी पार्टी का साथ छोड़ा हो।  इससे पहले आशुतोष, आनंद कुमार, अजीत झा, कपिल मिश्रा, आशीष खेतान और शाजिया इल्मी सहित कई नेता आम आदमी पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं।  चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी को मिला ये झटका पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। बता दें कि  पार्टी २६ नवंबर २०१२ को अस्तित्व में आई।  जितने साल पार्टी को अस्तित्व में नहीं हुए हैं उससे कई ज्यादा नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया है।  जिन नेताओं ने पार्टी को अलविदा कहा उनमें से कुछ ने कहा कि अरङ्क्षवद केजरीवाल का रवैया पार्टी के लिए ठीक नहीं है इसलिए वह पार्टी को छोड़ रहे हैं।  वहीं आम आदमी पार्टी को कई नेताओं का रवैया पसंद नहीं था इसलिए पार्टी ने कुछ नेताओं को अपने से अलग कर लिया।  इनमें योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, आनंद कुमार और अजीत झा का नाम शामिल है। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी ने अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। वहीं कपिल मिश्रा और शाजिया इल्मी भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।  संजय ङ्क्षसह , सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता को राज्यसभा भेजे जाने कारण कुमार विश्वास ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया था। अलका लांबा कांग्रेस छोड़कर जरूर आम आदमी पार्टी से जुड़ी थीं लेकिन उन्होंने भी वापस कांग्रेस का दामन थाम लिया है। अब सवाल यहां पर आकर यह खड़ा हो रहा है कि केजरीवाल इस चुनाव में अकेले पार्टी की नैय्या पार लगा पाएंगे। वहीं केजरीवाल को अपने ही चुनौती दे रहे हैं। इनसे निपटना केजरीवाल के लिए टेड़ी खीर माना जा रहा है। इस सबके बावजूद केजरीवाल अपने किये कामों को जनता के बीच गिना रहे हैं। इतना ही नहीं आगामी पांच साल का खाका तैयार कर फिर से सरकार बनाने का दावा भी कर रहे हैं। लेकिन यह देखना होगा जनता पर इनका क्या असर होता है। क्योंकि पिछले चुनाव के वक्त केजरीवाल पर कांग्रेस का हाथ था। अब कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस का दावा है कि इस बार उसकी दिल्ली में सरकार अवश्य बनेगी। कांग्रेस का यह दावा इसलिए भी पुख्ता माना जा रहा है क्योंकि हाल ही में महाराष्ट्र और झारखंड में सरकार बनाने में उसका विशेष योगदान है। वह दोनों राज्यों में बराबरी की भूमिका निभा रही है।  कांग्रेस को आशा है कि वह अपने खोये हुए जनाधार को फिर से पाने में कामयाब होगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अपनी उपलब्धियां लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। इसलिए यह चुनाव केजरीवाल के लिए करो या मरो की स्थिति में पहुंच गया है। इसलिये केजरीवाल की राह आसान नजर नहीं आ रही है।  कांग्रेस हर वो फार्मूला अपना रही है जो उसने महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में अपनाया है।  जिसमें उसे भाजपा का रथ रोकने में काफी हद तक सफलता भी मिली। 
इधर भारतीय जनता पार्टी के मॉडल टाउन से उम्मीदवार कपिल मिश्रा ने अरङ्क्षवद केजरीवाल की सरकार पर करारा हमला बोला है।  दिल्ली सरकार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा है कि यहां कोई काम नहीं हुआ है।  कपिल मिश्रा ने कहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में कोई काम हुआ ही नहीं है।  बिजली पानी और बसों को फ्री करने के लिए मात्र तीन महीने के लिए निर्णय लिया गया है।  उन्होंने कहा है कि अगर दिल्लीवालों को पांच साल के लिए सरकार चाहिए तो बीजेपी को वोट करना चाहिए। कपिल मिश्रा ने कहा है कि दिल्ली में जमीन पर आप की कोई लहर नहीं है। उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि आप की लहर सिर्फ सर्वे में है। बात करें सर्वे की तो केजरीवाल को समर्थना मिलना बताया जा रहा है। पर जनता की ओर से कोई भी प्रतिक्रिया सामने नहीं आ रही है। तीनों पार्टियां अपनी सरकार बनाने के दावे कर रही हैं। लेकिन बहुमत किसको मिलता है फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी।  यह तो चुनावी परिणाम आने के बाद पता ही चलेगा। किसकी सरकार बनती है? 

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