भारतीय वैज्ञानिकों ने ईजाद की मलेरिया नियंत्रित करने की चमत्कारिक तकनीक
भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ताजा अध्ययन में मलेरिया के परजीवी प्लासमोडियम फैल्सीपैरम की कोशिकाओं के भीतर जीन डिलीवरी की उन्नत और किफायती पद्धति विकसित की है। लाइस-फिल विद डीएनए-रिसील नामक यह पद्धति प्लासमोडियम फैल्सीपैरम के जैविक एवं अनुवांशिक तंत्र के बारे में गहरी समझ विकसित करने में उपयोगी हो सकती है। इससे मलेरिया नियंत्रण में सहायता मिल सकती है। जीन्स की कार्यप्रणाली में बदलाव और उनके अध्ययन के लिए लक्षित कोशिकाओं में जीन डिलीवरी कराना एक आम पद्धति है। लेकिन, प्लास्मोडियम के अनुवांशिक अध्ययन में कई चुनौतियां हैं। शरीर में ऑक्सीजन ले जाने वाली लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) में जब प्लास्मोडियम बढ़ता है, तो यह मलेरिया का कारण बनता है। ऐसे में, परजीवी को नियंत्रित करना कठिन हो जाता है, क्योंकि लाल रक्त कोशिकाएं इसकी रक्षा करती हैं। यह स्थिति मलेरिया जीवविज्ञानी के लिए एक प्रमुख चुनौती होती है, क्योंकि प्लास्मोडियम के जीन्स तक पहुंचने के लिए चार कोशिका ङिल्लियों को पार करना होता है।
जीन डिलीवरी के लिए आमतौर पर इलेक्ट्रोपोरेशन तकनीक उपयोग की जाती है। इस तकनीक में विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करके कोशिका ङिल्ली की परतों में अस्थाई छिद्र बनाए जाते हैं, ताकि डीएनए जैसे वांछित रसायन कोशिका के भीतर प्रवेश कराए जा सकें। यह एक महंगी तकनीक है और इसमें काफी संसाधनों की जरूरत पड़ती है।
हालांकि, प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम की कोशिकाओं में जीन डिलीवरी की यह नई विधि परंपरागत तकनीक के मुकाबले किफायती है, जिसे हैदराबाद स्थित कोशकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के शोधकर्ताओं ने विकसित किया है। हाइपोटोनिक सॉल्यूशन के संपर्क में आने से (सॉल्यूशन जिसमें लवण की मात्र कोशिका के भीतर से कम हो) लाल रक्त कोशिकाओं में छेद हो जाता है, जिससे वांछित डीएनए कोशिका में प्रवेश कराया जा जाता है। सॉल्यूशन में लवण की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो विच्छेदित लाल रक्त कोशिका दोबारा सील हो जाती है। वैज्ञानिकों ने वांछित डीएनए युक्त पुन: सील हुई इन रक्त कोशिकाओं को प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम से संक्रमित कराया है। ऐसा करने पर देखा गया कि प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम आरबीसी के अंदर जाकर आरबीसी से डीएनए प्राप्त करता है और अंतत: डीएनए अपने जीन के साथ परजीवी के नाभिक में समाप्त हो जाता है।
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