न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च की अल नूर मस्जिद में शुक्रवार का दिन इबादत करने वालों पर भारी पड़ा। एक बंदूकधारी हमलावर ने अंधाधुंध गोलियां चला कर कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जबकि कई अन्य घायल बताए जा रहे हैं। यह हमला तब हुआ जब मस्जिद श्रद्धालुओं से भरी थी। मीडिया के मुताबिक हमलावर ब्रिटिश मूल का 28 वर्षीय युवक ब्रेंटन टैरेंट है जो ऑस्ट्रेलिया का रहने वाला है। इसके हमलावर ने आतंकी हमले के पहले एक सनसनीखेज मैनिफेस्टो लिखा था, जिसमें उसने हजारों यूरोपीय नागरिकों की आतंकी हमलों में गई जान का बदला लेने के साथ श्वेत वर्चस्व को कायम करने के लिए अप्रवासियों को बाहर निकालने की बात की है।
अग्रेंजी अखबार के मुताबिक हमलावर ने अपने मैनिफेस्टो दि ग्रेट रिप्लेसमेंट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नए सिरे से श्वेत पहचान और साझा उद्देश्य का प्रतीक बताया है। इस नरसंहार को अंजाम देने की वजह पर लिखा है, 'आक्रमणकारियों को दिखाना हैं कि हमारी भूमि कभी भी उनकी भूमि नहीं होगी, हमारे घर हमारे अपने हैं और जब तक एक श्वेत व्यक्ति रहेगा, तब तक वे कभी जीत नहीं पाएंगे। ये हमारी भूमि और वे कभी भी हमारे लोगों की जगह नहीं ले पाएंगे।
मैनिफेस्टो के मुताबिक हमलावर खुद को साधारण श्वेत व्यक्ति बता रहा है। जिसका जन्म ऑस्ट्रेलिया के श्रमिक वर्ग में हुआ। उसके परिजन ब्रिटिश मूल के हैं। 87 पेज के मैनिफेस्टो के मुताबिक वो श्वेत जन्म दर बदलने की बात कर रहा है। उसका कहना है कि अगर कल को सभी गैर-यूरोपीय अप्रवासियों को श्वेत भूमि से बाहर भी निकाल दिया जाए तब भी यूरोपीय लोगों का नाश सुनिश्चित है। हमलावर का कहना है कि यूरोपीय लोगों की संख्या हर रोज कम होने के साथ वे बूढ़े और कमजोर हो रहे हैं। इसके लिए फर्टिलिटी लेवल 2.06 से बढ़ाना होगा नहीं तो उनका समूल नाश निश्चित है। उसका कहना है कि हमारी फर्टिलिटी रेट कम है, लेकिन बाहर से आए अप्रवासियों की फर्टिलिटी रेट ज्यादा है लिहाजा एक दिन ये लोग श्वेत लोगों से उनकी भूमि छीन लेने वाले है।
हमलावर के मुताबिक उस नाटो देशों की सेना में तुर्की को शामिल किए जाने पर भी आपत्ति है। क्योंकि तुर्की विदेश है और मूलत:यूरोप का दुश्मन है। इसके अलावा वो फ्रांस के उदारवादी राष्ट्रपति को अंतरराष्ट्रीयतावादी, वैश्विक और श्वेत विरोधी बताता है। हमलावर बताता है कि उसके मन मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली घटना यूरोपीय देशों में हुए आतंकी हमले हैं। जिसके बाद उसने तय कर लिया कि लोकतांत्रिक, राजनीतिक हल के बजाय हिंसक क्रांतिकारी हल ही एकमात्र विकल्प है।
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