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ऐसे बच्चों को होता ऑटिज्म का ज्यादा खतरा  

ऐसे बच्चों को होता ऑटिज्म का ज्यादा खतरा  

ऐसे बच्चों को होता ऑटिज्म का ज्यादा खतरा  
ऑटिज्म एक प्रकार की मानसिक बीमारी है। इस बीमारी के लक्षण बचपन से ही बच्चे में नजर आने लगते हैं. इस बीमारी में बच्चे का मानसिक विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता है। इस बीमारी से जूझ रहे बच्चे दूसरे लोगों के साथ घुलने-मिलने से कतराते हैं। ऐसे बच्चे किसी भी विषय पर अपनी प्रतिक्रियाएं देने में भी काफी समय लेते हैं।
दुनियाभर में ज्यादातर लोग ऑटिज्म बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी का अभी वास्तविक कारण पता नहीं लग पाया है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ऑटिज्म की बीमारी जींस के कारण भी हो सकती है। इसके अलावा वायरस, जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी भी ऑटिज्म को जन्म दे सकती है।
इस बीमारी पर हुए एक अध्ययन में बताया गया है कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) से पीड़ित महिलाओं के पैदा होने वाले बच्चों में ऑटिज्म विकसित होने की अधिक आशंका रहती है। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान महिला में किसी बीमारी या पोषक तत्वों की कमी भी उनके बच्चे को ऑटिज्म बीमारी का शिकार बना सकती है।
क्या होते हैं लक्षण-
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तरह किसी भी बात पर प्रतिक्रिया देने से कतराते हैं। ऐसे बच्चे आवाज सुनने के बावजूद भी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं।
ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को भाषा संबंधी भी कई रुकावटों का सामना करना पड़ता है।
ऑटिज्म बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही खोए रहते हैं।
अगर आपका बच्चा नौ महीने का होने के बावजूद न तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो सावधान हो जाएं, क्योंकि ये ऑटिज्म का ही लक्षण है।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे कभी भी किसी से नजरें मिलाकर बात नहीं करते हैं।
मानसिक विकास न होने की वजह से ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों में समझ विकसित नहीं हो पाती है, जिस कारण उन्हें शब्दों को समझने में दिक्कत होती है। 
बच्चों को ई-बुक से नहीं किताबों से पढ़ाएं (06एफटी04एचओ)
आजकल तकनीक के दौर में लोगों का काम तो आसन हो गया है, लेकिन रिश्तों में दूरियां आनी शुरू हो गई हैं। पहले जहां माता पिता अपने बच्चों के साथ समय बिताया करते थे, उनको कहानियां सुनाया करते थे, तो वहीं आज तकनीक के इस युग में इन सभी चीजों में तेजी से बदलाव आ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार जो माता-पिता अपने बच्चों को किताबों की जगह ई-बुक से पढ़ाते हैं, उनका ध्यान बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा तकनीक के बारे में चर्चा करने में रहता हैं।
अध्ययन के दौरान 37 अभिभावकों के साथ उनके बच्चों को भी शामिल किया गया। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तीन पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया- प्रिंट बुक, इलेक्ट्रॉनिक बुक और एडवांस इलेक्ट्रॉनिक बुक, जिसमें साउंड के साथ एनिमेशन भी था।
इसमें सामने आया कि जो माता-पिता बच्चों को ई-बुक के माध्यम से पढ़ाते हैं, उनका ध्यान बच्चों की पढ़ाई में कम और तकनीक में ज्यादा होता है। यही कारण है कि बच्चे पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं लगा पाते हैं और अभिभावक भी उतने प्रभावशाली तरीके से उन्हें पढ़ाने में असफल रहते हैं।
बच्चों से बात करने और उन्हें पढ़ाने से बच्चों में लैंग्वेज स्किल्स विकसित होते हैं। साथ ही बच्चों की अपने अभिभावकों के साथ बॉन्डिंग भी मजबूत होती है। किताबों से पढ़ते समय बच्चों को जो अनुभव मिलते हैं, उन्हें वो लंबे समय तक याद रहते हैं। इसके अलावा बच्चों का दिमाग भी बेहतर ढंग से विकसित हो पाता है, जिस कारण वो नई चीजें जल्दी और आसानी से सीख पाते हैं। 
 

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