अपने आसपास के शोर को नजरअंदाज करना एक लापरवाही है, जो आप पर काफी भारी पड़ सकती है। इतना ही नहीं यह लापरवाही आपको 2050 तक बहरा भी बना सकती हैं। यह बात वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की एक रिसर्च में सामने आई है। दरअसल हाल में ही हुई एक रिसर्च में पाया गया कि दुनिया भर में जहां 44.6 करोड़ लोगों को सुनने में समस्या होती है, वही 2050 तक यह संख्या बढ़कर 90 करोड़ हो सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहना है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया कि मौजूदा समय में जो 60 फ़ीसदी लोग बहरेपन या सुनने से जुड़ी अन्य समस्याओं को लेकर आते हैं, वह बहुत पहले ठरक की जा सकती थी। लेकिन समय पर इसका इलाज ना होने के कारण यह समस्याएं देखनी पड़ी। रिपोर्ट में यह तो बताया कि सबसे ज्यादातर 12 से 35 साल के लोगों पर इसका असर पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ती उम्र के साथ सुनने में कमी आना स्वभाविक है, परंतु लोग कम उम्र से ही ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज करते हैं, जिससे सुनने में दिक्कतें आना शुरू हो जाती है। यह समस्या विकासशील देशों में अधिक देखी जाती है, क्योंकि यह लोग प्रीवेंटिव ट्रीटमेंट पर कम ध्यान देते हैं। लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहने की वजह से कान की नसें कमजोर हो जाती है और धीरे-धीरे सुनने की शक्ति खत्म हो जाती है। यह समस्या आगे चलकर बहरेपन का रूप ले लेती है। रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि निकोटिन का इस्तेमाल करने से भी कान की नसें कमजोर पड़ जाती है, जिसके बाद अधिकतर लोग तो सोच भी नहीं पाते हैं और लगातार निकोटिन के प्रयोग से बहरे होने लगते हैं। आज हर जगह शोर शराबा, तेज हॉर्न, डीजे, लाउडस्पीकर यह सभी हमारे जीवन शैली में कुछ इस तरह बस चुके हैं कि हमें उस वक्त तो इसके प्रभाव पता नहीं चलता, परंतु यह अंदर ही अंदर हमारे कान को खोखला करता जाता है। जब तक इसका होश आता है, तब तक इंसान सुनने की क्षमता खो बैठता है।
नेशन
आज की लापरवाही बना सकती है आपको 2050 तक बहरा: डब्ल्यूएचओ