दिल्ली: 7 साल में अर्श से फर्श तक पहुंची कांग्रेस पार्टी!
दिल्ली में भाजपा के साथ क्या हुआ जो बड़े-बड़े दावे कर रही थी? इन दो बयानों को पढ़कर एकबारगी आपको लगेगा कि बंपर बहुमत की ओर बढ़ रही आम आदमी पार्टी के किसी नेता ने ऐसा कहा होगा। लेकिन आप गलत सोच रहे हैं, यह कांग्रेस के 2 दिग्गज नेताओं अधीर रंजन चौधरी और कमलनाथ के बयान हैं। ये दो बयान नजीर हैं उस कांग्रेस के लिए जिसकी दिल्ली में अपराजेय वाली छवि थी और सत्ता के सिंहासन पर वह लगातार 15 साल काबिज रही। लेकिन अरविंद केजरीवाल के उगते सूरज ने कांग्रेस की नैया ऐसी डुबाई कि 7 साल में पार्टी अर्श से फर्श पर पहुंच गई है। इस चुनाव ने दिल्ली में कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी है। दरअसल यह हम नहीं कह रहे हैं। दिल्ली में कांग्रेस अगर बेदम और सरेंडर की मुद्रा में आ गई है तो इसके पीछे तीन चुनाव के आंकड़े बहुत कुछ साफ बयां कर रहे हैं। कांग्रेस का वोट शेयर इस बार 5 फीसदी के अंदर सिमट गया है। कभी शीला दीक्षित की अगुआई में जिस कांग्रेस का सूरज दिल्ली में कभी अस्त नहीं होता था, इस चुनाव में वह लड़ाई लड़ने से पहले ही हार का मन बना चुकी थी।
- 2013 में 24 फीसदी वोट, आप का उभार
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 24.55 फीसदी वोट शेयर (19.32 लाख मत) के साथ 8 सीटें जीती थीं। यह आम आदमी पार्टी के उभार का साल था और इसकी कीमत कांग्रेस ने चुकाई। जहां शीला दीक्षित नई दिल्ली सीट पर खुद केजरीवाल से चुनाव हारीं, वहीं आम आदमी पार्टी ने जोरदार आगाज के साथ 29.49 प्रतिशत वोट शेयर और 29 सीटें जीत लीं। बीजेपी 33.07 प्रतिशत वोट शेयर (26.04 लाख मत) और 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं चल सकी है।
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