हालिया रिसर्च में यह बात साबित हो चुका है कि अगर बच्चे सोने से ठीक पहले स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं तो उनकी नींद पूरी नहीं होती और दिनभर वे थकान और सुस्ती का अनुभव करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि बच्चे का ब्रेन विकासशील स्टेज में होता है और स्मार्टफोन समेत दूसरे गैजट्स से निकलने वाली नीली रोशनी बच्चे के ब्रेन के साथ-साथ बॉडी क्लॉक को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। इतना ही नहीं, एक और अहम फैक्टर यह भी है कि बच्चों की आंखों की पुतलियां बड़ों की तुलना में थोड़ी बड़ी होती हैं और इस वजह से वे गैजट्स से निकलने वाली रोशनी के प्रति सेंसिटिव होती हैं। ये दोनों ही फैक्टर्स नींद के लिए जरूरी मेलाटोनिन लेवल को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं, खासतौर पर बच्चों में। बहुत सी स्टडीज में यह बात साबित हो चुकी है कि बिस्तर में जाने के बाद सोने से पहले स्मार्टफोन यूज करने के कितने सारे साइड-इफेक्ट्स हैं। बावजूद इसके बड़ी संख्या में लोग सोने से पहले सोशल मीडिया चेक करते हुए और फोन पर गेम खेलते हुए रात बिता देते हैं। ऐसे में अगले दिन सुबह जब आप उठें और ऐसा लगे कि आपकी नींद पूरी नहीं हुई है, चिड़चिड़ाहट महसूस हो रही है और गुस्सा आ रहा है तो आपको पता होगा कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। यही बात बच्चे और टीनएजर्स के साथ भी होती है। अगर आपका बच्चा दिन भर चिड़चिड़ा और परेशान रहता है तो आपको बच्चे के स्क्रीन टाइम को गंभीरता से कंट्रोल करने की जरूरत है।