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'मोटा' अनाज सेहत ही नहीं, पर्यावरण को भी रखता है दुरुस्त

'मोटा' अनाज सेहत ही नहीं, पर्यावरण को भी रखता है दुरुस्त

मोटा' अनाज सेहत ही नहीं, पर्यावरण को भी रखता है दुरुस्त 
-ये अनाज आयरन, कॉपर, प्रोटीन से होते हैं भरपूर 
एक स्टडी में साबित हो गया है कि मोटा अनाज सेहत ही नहीं, पर्यावरण को भी दुरुस्त रखता है। भारत में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ और कई अन्य मोटे अनाज उगाए जाते हैं। ये अनाज आयरन, कॉपर, प्रोटीन जैसे तत्वों से तो भरपूर होते ही हैं, गेहूं, धान जैसी फसलों की तरह ग्रीन हाउस गैसों के बनने का कारण नहीं बनते। एक स्टडी बताती है कि गेहूं और धान को उगाने में यूरिया का बहुत प्रयोग किया जाता है। यूरिया जब विघटित होता है, तो नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रेट, अमोनिया और अन्य तत्वों में बदल जाता है। नाइट्रस ऑक्साइड हवा में घुलकर स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाती है। इससे सांस की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। यह एसिड रेन का कारण भी बनती है। यह गैस तामपान में भी काफी तेजी से बढ़ोतरी करती है। इसके साथ ही यूरिया के कारण जमीन की क्वॉलिटी भी खराब हो रही है और उसमें पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवी नष्ट हो रहे हैं। स्टडी के मुताबिक, 1966 में देश में करीब 4।5 करोड़ हेक्टेयर में मोटा अनाज उगाया जाता था। रकबा घटकर ढाई करोड़ हेक्टेयर के आसपास रह गया है। स्टडी में इसके लिए भारत की हरित क्रांति को जिम्मेदार ठहराया गया है।  जहां मोटे अनाजों का रकबा कम हो रहा है और किसान उन्हें कम उगा रहे हैं, वहीं सरकार इन्हें बढ़ावा देने पर जोर दे रही है। वह इनके पोषक गुणों को देखते हुए लोगों से इनका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने को कह रही है। वह इन्हें मिड-डे मील स्कीम में भी शामिल कर रही है। एक स्टडी में कहा गया है कि इसके विपरीत मोटे अनाजों के लिए यूरिया की खास जरूरत नहीं होती। वह कम पानी वाली जमीन में भी आसानी से उग जाते हैं। इस कारण ये पर्यावरण के लिए ज्यादा बेहतर होते हैं। इस पर अफसोस जताया गया है कि पिछले कई दशकों से मोटे अनाजों के रकबे में लगातार कमी आती जा रही है।  

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