बसंत के त्योहार में होली की रौनक सारे देश भर में एक समान रहती है। बृज भगवान कृष्ण की नगरी है। भगवान ने यहां रासलीला और बाल क्रीड़ा की थी, जो आज देशभर में हो रही है । इसके लिए गुलाल का विशेष महत्व है। होली का त्यौहार गुलाल उड़ाए बिना संपन्न नहीं होता है। यहां पर लगभग 15000 टन गुलाल का उत्पादन हर साल होता है। मथुरा से दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा , महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश एवं विदेशों तक मथुरा की हर्बल गुलाल की मांग बनी रहती है। फिल्मों में भी गुलाल का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है।
आरारोट, चुकंदर और पलास के फूलों से तैयार गुलाल
ब्रज में गुलाल तैयार करने वाले कारोबारी आरारोट चुकंदर और पलास के फूलों से हर्बल गुलाल तयार करते हैं आरारोट का गुलाल 40 से 50 रुपए प्रति किलो तक बिकता है बरसाना की लट्ठमार होली में इसी गुलाल का उपयोग किया जाता है। इसमें रसायनों का कोई प्रयोग नहीं होता है जिसके कारण यह पूर्णता सुरक्षित होती है फिल्मों में भी जिस गुलाल का उपयोग होता है वह भी मथुरा से जाती हैं
मथुरा में ही होली में लगता है 500 टन गुलाल
मथुरा, हाथरस तथा बृज में प्रतिवर्ष 15000 टन गुलाल का उत्पादन होता है। इसमें से मथुरा में ही लगभग 500 से 600 टन गुलाल लगता है। यहां के हर मंदिर में गुलाल की मांग होती है। बरसाना की होली लट्ठमार, होली बांके बिहारी और कान्हा जी की होली में यही से बनी गुलाल का उपयोग किया जाता है।
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बृज में तैयार होती है 60 फ़ीसदी हर्बल गुलाल हाथरस मथुरा और बृज में खेतों और छतों में तैयार होती है गुलाल