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सहज और बेमिसाल अभिनेत्री थीं नूतन  

सहज और बेमिसाल अभिनेत्री थीं नूतन  

सहज और बेमिसाल अभिनेत्री थीं नूतन  
अपने जमाने की दिग्गज अभिनेत्री नूतन की पहचान सहज और करिश्माई अभिनय के लिए हमेशा बनी रहेगी। अभिनेत्री नूतन ने अपने अभिनय से रुपहले पर्दे पर जो रंग भरा वो आज भी बेहद गहरा और उसका कोई जवाब नहीं है। मौत के 27 साल बादी भी वो अपनी फ़िल्मों और अपने निभाये गए किरदारों के कारण याद की जाती हैं।
मुंबई में जन्मी नूतन के पिता कुमारसेन समर्थ एक जाने-माने निर्देशक और कवि रहे हैं जबकि उनकी मां शोभना समर्थ एक जानी-मानी अभिनेत्री थीं। ज़ाहिर है परिवार में कला को लेकर एक माहौल उन्हें विरासत में ही मिला। पंचगनी के एक कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वो उच्च शिक्षा के लिए स्विटज़रलैंड चली गईं। जहां तकरीबन एक साल तक रहने के बाद स्वदेश लौटीं। विदेश जाने से पहले वो कुछ फ़िल्में कर चुकी थीं जो कामयाब नहीं हो पायी। केवल 14 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ से डेब्यू किया था।
नूतन साल 1952 में मिस इंडिया पीजेंट भी चुनी गयी थीं। नूतन को पहला बड़ा ब्रेक साल 1955 में आई फ़िल्म ‘सीमा’ में मिला। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने पहला फ़िल्मफेयर अवार्ड भी जीता। यहां से उनकी कामयाबी को एक नया आसमान मिला। एक के बाद एक कई फ़िल्में जैसे-‘पेईंग गेस्ट’, ‘अनाड़ी’, ‘सुजाता’ हिट साबित हुईं। वाकई हिंदी सिनेमा को अपनी समर्थ हीरोइन मिल गयी थी। 
साल 1963 में आई फ़िल्म 'बंदिनी' भारतीय सिनेमा जगत में अपनी संपूर्णता के लिए सदा याद की जाएगी। बिमल रॉय की ‘बंदिनी’ नूतन के कैरियर में एक मील की पत्थर की तरह है। इसके अलावा ‘छलिया’, ‘देवी’, ‘सरस्वतीचंद्र’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘सौदागर’ जैसी 70 से ज्यादा फ़िल्में करने वाली नूतन अपार कामयाबी पाने के बावजूद सादगी की एक मिसाल रही हैं।
नूतन ने अपने कैरियर के टॉप पर पहुंचने के बाद साल 1959 में नेवी के लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी कर ली थी। उनका पुत्र मोहनीश बहल भी अभिनेता है। बहरहाल, शादी ही नहीं बल्कि बेटे के जन्म साल 1961 के बाद भी वो लगातार फ़िल्में करती रहीं।
सीमा’, ‘सुजाता’, बंदिनी’, ‘मिलन’ और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर अवार्ड जीत कर नूतन ने साबित कर दिया कि वो अपनी दौर की शीर्ष अभिनेत्री हैं। साल 1985 ‘मेरी जंग’ के लिए उन्होंने फ़िल्मफेयर से श्रेष्ठ सहयोगी अभिनेत्री का अवार्ड भी जीता। पद्मश्री समेत कई सम्मान पाने वाली नूतन को साधना से लेकर स्मिता पाटिल जैसी अभिनेत्रियां अपना रोल मॉडल मानती रही हैं। 
उनके फ़िल्मों के अलावा जो गाने उन पर फ़िल्माये गए वह भी यादगार हैं और आज तक गुनगुनाये जाते हैं।  'छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा', सावन का महीना', 'चन्दन सा बदन', फूल तुम्हें भेजा है खत में' ये सब गीत सुपरहिट्स में गिने जाते हैं। साल 1990 में नूतन को स्तन कैंसर हो गया। जिसके एक साल बाद ही इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी थी।

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