उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में होली पर निकलने वाले लाट साहब का जलूस यूं तो शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। परंतु प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी लाट साहब को जूते मारने से रोका नहीं जा सका।
जिले में लाट साहब के दो जुलुस निकलते हैं बड़े लाट साहब का जुलूस चौक क्षेत्र स्थित फूलमती मंदिर से लाट साहब को मत्था टेकने के बाद जलूस चौक कोतवाली आया वहां पर कोतवाल ने लाट साहब को सलामी देने के साथ इनाम भी दिया।
जुलुस कोतवाली के बाद विभिन्न मार्गों पर होते हुए घंटा घर पहुंचा और वहां से घूमता हुआ पुनः चौक क्षेत्र में जाकर समाप्त हो गया।
वही छोटे लाल साहब का जुलूस सराय काइया से शुरू हुआ और यह पक्का पुल होकर फिर उसी स्थान पर समाप्त हो गया।
इस बार प्रशासन ने काफी चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था की थी ताकि कोई बवाल ना हो इसीलिए लाट साहब को जूते मारने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी। परंतु प्रशासन की कोशिश के बाद भी लोग लाट साहब को जूता मारते रहे।
जिलाधिकारी अमृत त्रिपाठी ने ईएमएस को बताया कि जुलूस की निगरानी हेतु 4 ड्रोन कैमरे लगाए गए हैं। जबकि पूरे रोड पर 200 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे से लाट साहब के जुलूस पर निगरानी रखी गई तथा 200 मजिस्ट्रेट जुलूस के मार्गों पर तैनात किए गए हैं।
पुलिस अधीक्षक डॉ एस चनप्पा ने ईएमएस को बताया कि दो कंपनी आर ए एफ तथा दो कंपनी पीएसी के अलावा पूरे जोन से पुलिस फोर्स मांगा गया था जो उपलब्ध भी हुआ तथा जिले की पुलिस फोर्स को लगाया गया इसके अलावा 500 वालंटियर जुलूस में तैनात किए गए।
जुलूस में विभिन्न सुविधाओं से लैस एंबुलेंस भी लगाई गई थी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आर पी रावत ने ईएमएस को बताया कि पूरे जिले के डॉक्टरों को अलर्ट कर दिया गया तथा जुलूस के दौरान इमरजेंसी सेवाएं खुली रही।
लाट साहब को बैलगाड़ी पर तख्त डाल कर बिठाया गया तथा सिर पर हेलमेट भी पहनाया गया ताकि चोट ना लगे इसके अलावा उनके ऊपर झाड़ू से हवा की जाती रही तथा लाट साहब की जय बोलते हुए लोग लाट साहब के जूते मार रहे थे।
इस जुलूस में बनने वाले लाट साहब को इस बार गाजियाबाद से लाया गया और यह दूसरे समुदाय के होते हैं तथा होली से 15 दिन पूर्व इन्हें यहां लाकर गुप्त स्थान पर रखा जाता है। आयोजक इनके पूरे परिवार को कपड़े देते हैं तथा काफी धन राशि भी दी जाती है।
1947 में अंग्रेजों द्वारा किए गए विभाजन के बाद तत्कालीन वायसराय माउंटबेटन को भारत छोड़ते समय जनता द्वारा गधे पर बिठाया गया तथा जूतों की माला पहनाकर पीटते हुए यह जुलूस निकाला गया। इसी क्रम में अंग्रेजों के अत्याचारों को याद करते हुए उनके विरुद्ध आक्रोश को जाहिर करते हुए यह प्रथा वर्षों से चली आ रही है।
वर्ष 2016 में स्थानीय निवासी मासूम रजा नामक व्यक्ति ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में इस जुलूस को बंद करा कराने हेतु एक रिट याचिका दायर की थी परंतु हाई कोर्ट ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी किए जिला प्रशासन का मामला है।