आयुर्वेद के अनुसार आहारचर्या
जो व्यक्ति यह जानता की किस ऋतू में कैसा आहार -विहार करना चाहिए उसे ही आहार का फल प्राप्त होता हैं। यदि वह नहीं जानता हैं की किस ऋतू में कौन सा अन्न खाना चाहिए तो मात्रापूर्वक आहार करने पर भी उसे आहार का फल प्राप्तनहीं हो सकता।
क्या कभी सोंचा है कि बदलते मौसम में आपकी भोजन कैसा होना चाहिये। आयुर्वेद अनुसार जानें मौसम के लिहाज से हमें किस महीने में क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
आयुर्वेद के अनुसार हमें मौसम के अनुसार खाने पीने की आदत डालनी चाहिये। आमतौर पर लोग एक ही भोजन हर मौसम में उपयोग करते हैं जो कि बेहद गलत है। आयुर्वेद में मौसम को 6 हिस्सों में बांटा गया है, जिसका असर हमारे शरीर की पाचन क्षमता और शारीरिक बल पर पड़ता है। इसलिये हमें अपने भोजन का चयन और उसकी मात्रा पर खास ध्यान देना चाहिये। स्वास्थ्य को अगर बेहतर बनाना है तो यहां जानें आयुर्वेद के अनुसार किस मौसम में क्या खाएं और क्या नहीं....
शरद ऋतु (मध्य सितंबर से मध्य नवंबर)
वर्शाशीतोचित्ताँगनाम सहसेवार्करश्मिभिः।
तप्तानामचित्तं पित्तम प्रायः शारदी कुप्यति।
वर्षाकाल में जिनको शीतसातम्य हो गया रहता हैं ऐसे लोगों के अंग सहसा सूर्य की प्रखर किरणों से तप्त हो जाते हैं, फलतः वर्ष ऋतू में संचित हुआ पित्त शरद ऋतू में कुपित हो जाता हैं।
इस मौसम में बेहद हल्का, मीठा और शीतल भोजन करना चाहिये क्योंकि यह पचने में बेहद आसान होता है। शरीर में पित्त न बने इसके लिये नीम, करेला, सहजन जैसी चीजों का सेवन करें। इस दौरान तुरई, लौकी, चौलाई आदि कसैले साग का सेवन लाभदायक होता है। दाल की बात करें तो इस मौसम में छिलके वाली मूंग की दाल, त्रिफला, मुनक्का, खजूर, जामुन, परवल, आंवला, पपीता, अंजीर का सेवन करें।
हेमन्त ऋतु ( मध्य नवंबर से मध्य जनवरी)
शीते शीतानिलस्पर्श संरुधो बालिनाम बली,
पक्ताभवति हेमन्ते मात्राद्रव्यगुरुक्षामः।
हेमंत ऋतू में शीतलता अधिक रहती हैं अतः शीतलवायु के स्पर्श से अभ्यन्तर अग्नि के रुक जाने के कारण बलवान पुरुषों में जठराग्नि बलवान होकर मात्राऔर द्रव्य में गुरु आहार को पचाने में समर्थ रहती हैं।
इस मौसम में रातें लंबी होती हैं और दिन छोटे। ऐसे में शारीरिक की गतिविधि धीमी पड़ जाती है और शरीर में ऊर्जा बचने लगती है। इस मौसम में देर से पचने वाला भोजन नहीं करना चाहिये। रात लंबी होती है इसलिये सुबह ब्रेकफास्ट जरूर करें। साथ ही घी, दूध आदि से युक्त, देर से पचने वाला भोजन करें। आप लड्डू, पाक, हलवा, आदि पौष्टिक आहार का सेवन जरूर करें। सिर में तेल की मालिश और धूप जरूर सेंके।
शिशिर ऋतु (मध्य जनवरी से मध्य मार्च)
हेमंत शिशिरौ तूल्यौ शिशिरालपं विशेषणम। रौक्ष्यामादानजम शीतं मेघमारुत्वार्षजम।
तस्माद्विमानतिकःशिशिरेविधिरिष्यते, निवातमुक्षणं त्वधिकम गृहमाश्रयेत।
सामान्य रूप से हेमंत और शिशिर दोनों ऋतुए यध्यपि समान होती हैं किन्तु शिशिर में कुछ विशेषता होती हैं। आदानकाल होने से शिशिर ऋतू में रुक्षता आ जाती हैं तथा मेघ, वायु, और वर्षा के कारण शीत पड़ने लगती हैं। अतः शिशिर ऋतू में भी हेमंत ऋतू की ही सब विधियां पालन करना चाहिए। विशेष रूप से नियत (तीव्र वायुरहित ) तथा उष्ण गृह में निवास करना चाहिए।
इस मौसम में शरीर में एनर्जी तेज और पाचक की अग्नि तीक्ष्ण रहती है। इसलिए देरी से पचने वाला भारी भोजन करें। खाली पेट रहने से बचें। इस मौसम में पौष्टिक आहार लें। लहसुन, अदरक की चटनी खाएं। दूध, घी, तिल आदि से बने फूड का सेवन करें। साथ ही ठंडे की जगह गुनगुने पानी का सेवन करें। अगर बीमारियों से बचना है तो इस मौसम में ठंडी चीजों को खाने से बचें और उपवास करने से बचें।
बसन्त ऋतु (मध्य मार्च से मध्य मई)
बसन्ते निचितः श्लेषमा दिनकृन्द्राभीरीरितः कायाग्नि बांधते रोगानस्ततः
प्रकुरुते बहून। तस्मादवसंते वामनादीनि कारयेत।
हेमंत ऋतू में संचैत हुआ कफ बसंत ऋतू में सूर्य की किरणों से प्रेरित होकर जठराग्नि को मंद कर देता हैं अतः अनेक प्रकार के रोग उतपन्न हो जाते हैं उस संचित कफ को दूर करने के लिए बसंत ऋतू में वमन आदि पंचकर्म कराना चाहिए।
इस मौसम में पाचक रस की उत्पत्ति और काम करने की क्षमता कम होने लगती है। सर्दी, जुकाम आदि रोग पकड़ने लगते हैं। ऐसे में आपको पुराने अन्न व धान्य का सेवन करना चाहिए। दालों में मूंग, मसूर, अरहर और चना का सेवन करें। इसके अलावा अपने शरीर की मालिश कर गुनगुने पानी से स्नान करें। इस मौसम में ठंडी प्रकृति वाला भोजन न करें। ज्यादा घी व तला भोजन, मिठाइयां न खाएं। न ही दिन में सोना और रात में देर तक जागना चाहिए।
ग्रीष्म ऋतु (मध्य मई से मध्य जुलाई)
मयूखैःरजगतः स्नेहम ग्रीष्मे पेपीयते रविः। स्वादु शीतं द्रवम स्निग्धमणनपानं तदा हितम।
शीतं सशर्करा:मन्थम जांगलान्मृगपक्षिणः। घृतं पयः साशाल्यन्नं भजनम ग्रीष्मे न सीदति।
ग्रीष्म ऋतू में सूर्य अपनी किरणों द्वारा संसार के स्नेह को सोख लेते हैं अतः इस काल में मधुर रस तथा शीट वीर्य वाले द्रव्य, द्रव, तथा स्निग्ध अन्न -पान, चीनी के साथ शीतल मंथ (घी सत्तू एवं जल का नातिसान्द्र मिश्रण ) घी, दूध, चावल इनका सेवन करने से स्वाभाविक बल का नाश नहीं होने पाता।
इस मौसम में पाचन क्षमता बेहद कमजोर हो जाती है। इसलिये खाने में गर्म, तीखे, मसालेदार, नमकीन, खट्टे और तले हुए भोजन से दूर रहें। वहीं, ठंडी तासीर वाली तरल चीजें खाएं जैसे लस्सी, छाछ अैर सत्तू। फलों में मौसमी, अंगूर, अनार, तरबूज आदि रसीले फल व फलों का रस, नारियल पानी, गन्ने का रस, कैरी का पना, ठण्डाई, शिकंजी का सेवन करें। ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं और सिर पर ठंडे तेल की मालिश करें।मांसाहारियों को इस दौरान मांस, मछली अंडा और शराब सेवन नहीं करना चाहिए
वर्षा ऋतु (मध्य जुलाई से मध्य सितंबर)
आदान दुर्बले देहे पक्ता भवति दुर्बलः, स वर्षसुनिलादीनाम दूषणैबारध्यते पुनः
। भू बाष्पा न मेघनि सयदात पाकादंला जलस्य च। वर्षासुगनिबले क्षीणे कुप्यन्ति पावनादयः
तस्मात साधारणःसर्वो विधिवर्षासु शस्यते।
आदान काल में मनुष्यों का शरीर अत्यंत दुर्बल रहता हैं। दुर्बल शरीर में एक तो जठराग्नि दुर्बल रहती हैं, वर्षा ऋतू आजाने पर दूषित वातादि दोषों से दुष्ट जठराग्नि और भी दुर्बल हो जाती हैं। इस ऋतू में भूमि से वाष्प निकलने, आकाश से जल बरसने तथा जल का अम्ल विपाक होने के कारण जब अग्नि का बल अत्यंत क्षीण हो जाता हैं तब वातादि दोष कुपित हो जाते हैं। अतः वर्षाकाल में साधारण रूप से सभी नियमों का पालन करना चाहिए।
इस मौसम में शरीर में वात बढ़ी हुई होती है इसलिए पाचन से जुडे रोग ज्यादा होते हैं। पित्त बढ़ाने वाले तीखे, नमकीन, तले हुए, मसालेयुक्त और खट्टे पदार्थ का सेवन न करें। भोजन में दूध, घी, शहद, जौ, गेंहू व साठी चावल खाएं। पेट का रोग न हो इसलिये सौंठ और नीबू खाएं। पानी को उबालकर पिएं। इस मौसम में शराब, मांस, मछली और दही का सेवन न करें।
हमारा शरीर तीन दोषों यानी वात, पित्त और कफ, सात धातुओं यानि रस, रक्त, मांस, मेद,अस्थि मज्जा और वीर्य तथा १८ प्रकार के मलों से बना हैं और यह पंचमहाभौतिक हैं। हमारा शरीर और दिनचर्या इसी पर आधारित हैं, इसके कारण हमें अपनी दिनचर्या उसी अनुसार करना चाहिए तभी हम स्वस्थ्य रह सकेंगे। हमारी दिन चर्या प्रकृति के अनुरूप होना चाहिए ना की आप प्रकर्ति को अपने अनुरूप चलाएंगे।
आरोग्य
आयुर्वेद के अनुसार आहारचर्या