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 पीएम मोदी की तारीफ, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस मिश्रा की निंदा की 

 पीएम मोदी की तारीफ, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस मिश्रा की निंदा की 

 पीएम मोदी की तारीफ, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस मिश्रा की निंदा की 
 जस्टिस अरुण मिश्रा ने अपने सात पन्नों की थैंक्यू स्पीच में दो ऐसी लाइनें बोल दी हैं, इन लाइनों को लेकर विवाद हो गया है। जस्टिस अरुण मिश्रा ने एक लाइन में कहा, पीएम नरेंद्र मोदी को 'अंतरराष्ट्रीय दूरदर्शी व्यक्ति' कहा था और दूसरी लाइन में 'बहुमुखी प्रतिभा का धनी, दुनिया के बारे में सोचने वाला, लेकिन स्थानीय रूप से काम करने वाला कहा।' इसके बाद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने एक रिजॉल्यूशन निकाला है,इसमें पीएम मोदी की तारीफ करने के लिए जस्टिस मिश्रा की निंदा की है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रमुख दुष्यंत दवे हैं। इसके साथ ही उन्होंने सभी जजों से ये अपील की है कि राजनीतिक लोगों से अधिक नजदीकी ना बढ़ाएं, ताकि न्याय व्यवस्था स्वतंत्र रूप से काम कर सके और अदालतों पर लोगों का भरोसा बना रहे। जस्टिस मिश्रा ने पीएम मोदी को दुनिया के लिए सोचने वाला और स्थानीय रूप से काम करने वाला कहा था, जो दिल्ली दंगों के संदर्भ में सही नहीं लगता। जहां एक ओर दिल्ली में दंगे हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर केंद्र के तहत आने वाली दिल्ली पुलिस लाचार नजर आ रही थी। फिलहाल स्थिति काबू में है, लेकिन ये अभी भी एक रहस्य बना हुआ है कि आखिर पुलिस ने एक सख्त कदम उठाने में इतनी देर क्यों कर दी।
बहुत से जज हैं जो सार्वजानिक और निजी जिंदगी में अलग-अलग मुखौटे पहने नजर आते हैं। इनके बारे में बात करने से पहले उस ट्रेंड की बात करते हैं जो सुप्रीम कोर्ट के जजों से तेजी से फैल रहा है, जिसके तहत वह खुद को 'कहीं भी शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट' के चैंपियन की तरह दिखाते हैं, जो कि बोलेने की आजादी के तहत आता है। शाहीन बाग का मामला दो महीनों ने चल रहा है, क्यों उन्होंने उसके बारे में नहीं बोला? क्या होगा अगर कल के दिन ऐसा ही कोई केस उनके सामने आ जाए? क्या ऐसे में समर्थन में और खिलाफ में खड़े पक्ष न्याय की उम्मीद कर सकते हैं? या फिर क्या वहां इसतरह के मामलों को सुनने से मना कर देने वाले हैं, जिसमें उन्होंने अपने विचार सबके सामने रख दिए हैं? हाल ही में जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा था असहमति होने का अधिकार सबसे बड़ा अधिकार है और मेरे हिसाब से ये संविधान का सबसे अहम अधिकार है। उन्होंने कहा कि जो लोग पावर में हैं वह ये दावा नहीं कर सकते कि वह जनता की इच्छा सामने रखने वाले हैं। तो फिर वास्तव में कौन जनता की इच्छा दिखाएगा? हम ये जानना चाहेंगे। अभी जस्टिस गुप्ता असहमति के प्रति अपना प्यार जताते नजर आ रहे हैं, लेकिन 8 अगस्त 2018 को उनका बिल्कुल उल्टा नजरिया सामने आया था, जब वह जस्टिस मदन बी लोकुर वाली बेंच के तहत एक केस की सुनवाई कर रहे थे। इस केस में राज्य के वकील ने कहा कि जस्टिस गुप्ता की पत्नी ने हिमाचल प्रदेश में जंगल की जमीन पर अतिक्रण को लेकर जनहित याचिका दायर की है।

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