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मोदी का विकल्प नहीं बन सकते केजरीवाल

मोदी का विकल्प नहीं बन सकते केजरीवाल

मोदी का विकल्प नहीं बन सकते केजरीवाल 
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने लगातार तीसरी बार दिल्ली में सरकार क्या बना ली आम आदमी पार्टी के छोटे बड़े सभी नेता अरविंद केजरीवाल के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प बनने के सपने देखने लगे हैं। आम आदमी पार्टी के नेताओं के साथ ही दूसरे अन्य विपक्षी दलों के नेता भी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में विपक्ष को संगठित करने की बात करने लगे हैं। इस काम में कांग्रेस के भी कई बड़े नेता खुलकर अरविंद केजरीवाल के पक्ष में बयान बाजी कर रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने में सफल तो हो गए हैं। लेकिन पहले की तुलना में उनकी सीट व वोट प्रतिशत में कमी आई है। 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटे व 48 लाख 79 हजार 123 मत मिले थे जो कुल मतदान का 54.30 प्रतिशत थे। उस चुनाव में अरविंद केजरीवाल को 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 29 सीटें तथा 24.8 प्रतिशत वोट अधिक मिले थे। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती है जो पहले की तुलना में 5 कम है। इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आज आम आदमी पार्टी को 2015 की तुलना में मत प्रतिशत में भी 0.73 प्रतिशत की कमी आई है। इस प्रकार देखे तो दिल्ली में 2015 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का ग्राफ कम हुआ है।
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी का विकल्प बनने की बातें करने वालों को चुनावी आंकड़ों पर भी गौर करना चाहिए। जहां भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में देश के 436 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़कर 303 सीटों पर जीत हासिल की थी। उसे कुल मतदान का करीबन 37.76 प्रतिशत वोट मिले थे। वही आम आदमी पार्टी ने उस चुनाव में देश के 9 राज्यों की मात्र 36 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था। जिसमें एक प्रत्याशी जीत पाया था। आम आदमी पार्टी के सभी प्रत्याशियों को 27 लाख 16 हजार 629 वोट मिले थे जो कुल मतदान का सिर्फ 0.44 प्रतिशत था। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी देश में 432 सीटों पर चुनाव लडक़र मात्र 4 सीटें ही जीत पाई थी। उसे पूरे देश में एक करोड़ एक करोड़ 13 लाख 635 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 2.05 प्रतिशत था। उस चुनाव में अरविंद केजरीवाल की भी बनारस में करारी हार हुई थी।
राज्यों की बात करें तो आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मिजोरम, पुडुचेरी, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित 14 राज्यों के विधानसभा चुनाव में तो आम आदमी पार्टी ने अभी तक भाग भी नहीं लिया है। वहीं देश के 19 प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भाग लिया जिसमें 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा है। पंजाब विधानसभा के 2017 में संपन्न हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी को 20 सीटों पर जीत मिली थी तथा 36 लाख 62 हजार 665 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 23.72 प्रतिशत था। पंजाब में आम आदमी पार्टी को विधानसभा में नेता विपक्ष की मान्यता मिली हुई है।
2017 में गोवा विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 57 हजार 420 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 6.27 प्रतिशत थे। लेकिन वहां उनका एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया था। 2019 में झारखंड विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को कुल 35 हजार 252 वोट मिले तो कुल मतदान का 0.23 प्रतिशत थे। 2019 में ही महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 57 हजार 855 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.01 प्रतिशत थे। 2019 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 59 हजार 839 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.48 प्रतिशत थे। 2019 में ही ओडीशा में आम आदमी पार्टी के सभी प्रत्याशियों को मिलाकर 14 हजार 916 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.06 प्रतिशत थे।
2018 मे राजस्थान विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को एक लाख 36 हजार 345 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.38 प्रतिशत थे। राजस्थान में आप के प्रदेशाध्यक्ष रामपाल जाट को मात्र 628 वोट ही मिल पाये थे। 2018 में मध्यप्रदेश में आज आम आदमी पार्टी को 2 लाख 53 हजार 106 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.66 प्रतिशत थे।  2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को एक लाख 23 हजार 525 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.87 प्रतिशत थे। 2018 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 23 हजार 468 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.06 प्रतिशत थे।
2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 13 हजार 134 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.06 प्रतिशत थे। इसी वर्ष नागालैंड विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 7 हजार 491 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.75 प्रतिशत थे। 2018 में मेघालय विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को कुल एक हजार 410 वोट मिले जो कुल मतदान का जी0.09 प्रतिशत था। 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 29 हजार 509 वोट मिले जो कुल मतदान का 0.10 प्रतिशत थे। 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मात्र 1150 वोट मिले। वहीं 2014 में जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मात्र 215 वोट ही मिले थे।
उपरोक्त विश्लेषण में यह साफ हो जाता है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली व पंजाब को छोड़कर देश के किसी भी प्रदेश में अपना एक भी प्रत्याशी को नहीं जीता पाई है। यहां तक कि दिल्ली व पंजाब के अलावा सभी प्रदेशों में उनके किसी भी प्रत्याशी की जमानत तक नहीं बच पाई है। आम आदमी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में बड़ी आस थी तथा उन्होंने वहां मुख्यमंत्री तक अपनी पार्टी का बनाने की घोषणा कर दी थी। लेकिन चुनाव परिणामों में उनकी पार्टी की बहुत बुरी गत हुई उनके सभी प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो गई थी।
दिल्ली में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल को यह अच्छे से समझ में आ गया है कि केन्द्र  सरकार से टकराव करके वो आगे नहीं बढ़ सकते हैं। क्योंकि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है जहां मुख्यमंत्री से ज्यादा उपराज्यपाल को अधिकार प्राप्त होते हैं। ऐसे में उन्हे पग-पग पर केंद्र से सहयोग की आवश्यकता रहती है। उन्हें इस बात का भी एहसास हो गया है कि वह दिल्ली में सरकार बनाने में तो कामयाब हो गए हैं। लेकिन उनका यह जादू लंबे समय तक चलने वाला नहीं हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सम्बंध सुधारे बिगर वह दिल्ली की जनता से किए हुए अपने वादे पूरे नहीं कर पाएंगे।
इसी कारण केजरीवाल ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली में भाजपा के सभी सातों लोकसभा सदस्य व भारतीय जनता पार्टी से जीते सभी 8 विधायकों के अलावा विपक्ष के किसी भी नेता को आमंत्रित नहीं किया। विपक्षी दलों के नेताओं को शपथ ग्रहण समारोह में ना बुलाकर केजरीवाल ने साफ संकेत दे दिया है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टकराव का रास्ता नहीं अपनाएंगे। बल्कि उनका सहयोग लेकर दिल्ली में सरकार चलाएंगे। विपक्ष के जो नेता केजरीवाल में मोदी का विकल्प देख रहे थे उन्हें भी शायद केजरीवाल के नए अवतार को देखकर निराशा ही हाथ लगेगी।

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