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आठ से अधिक घंटे काम करना बना सकता है बीमार  - हो सकते हैं कई गंभीर बीमारी के शिकार 

आठ से अधिक घंटे काम करना बना सकता है बीमार  - हो सकते हैं कई गंभीर बीमारी के शिकार 

आठ से अधिक घंटे काम करना बना सकता है बीमार 
- हो सकते हैं कई गंभीर बीमारी के शिकार 

 क्या आपको पता है कि हर दिन 9 घंटे काम करने के चलते आपको कई बीमारी अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं। इनका नाम है, हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, ऐंग्जाइटी, स्ट्रोक, डिप्रेशन, मसल्स पेन, बैक पेन, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल पेन आदि। विशेषज्ञों का मानना है कि  जो लोग 8 घंटे से अधिक लंबी शिफ्ट में लगातार काम करते हैं, उन लोगों में कुछ समय बाद अकेलेपन की भावना घर करने लगती है। इसका मुख्य कारण होता है कम्यूनिकेशन का अभाव और फैमिली तथा फ्रेंड्स के साथ वक्त ना बिता पाना। इस कारण ये लोग अपनी सोसायटी से कट जाते हैं। अक्सर ऐसे केसेज हमारे पास आते हैं कि एक छत के नीचे रहते हुए भी लोग थकान के कारण एक-दूसरे को वक्त नहीं दे पाते हैं, जिससे एक-दूसरे से दूरी बनने लगती है और फिर यहीं से अकेलापन घर करने लगता है। आइडियली एक इंसान को दिन में कितने घंटे काम करना चाहिए? इस मुद्दे पर एक ऑर्गेनाइजेशन द्वारा कराई गई रिसर्च में सामने आया कि भारतीय युवा काम के लिए निर्धारित 8 घंटों से कहीं अधिक समय ऑफिस में रुकते हैं और लंबी शिफ्ट्स में काम करते हैं। यही वजह है कि युवाओं में तनाव का प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है। अगर जापान जैसे विकसित देश की बात करें तो वहां के युवा सामान्य तौर पर सप्ताह में केवल 46 घंटे ऑफिस में बिताते हैं। जबकि भारत के युवाओं का यह समय 52 घंटे है।युवाओं के व्यवहार में तेजी से बढ़ती नकारात्मकता का बड़ा कारण यह है कि वे मेंटली तो बहुत अधिक थक रहे हैं और फिजिकली ऐक्टिव रहने का उनके पास ना तो वक्त है और ना ही ऑफिस के बाद उनमें इतनी एनर्जी बचती है। ऐसे में वे धीरे-धीरे अपने-आपमें सिमटने लगते हैं। जब मन की बातें और दिमाग की परेशानी वे किसी से शेयर नहीं कर पाते तो उनके अंदर इरिटेशन बढ़ने लगता है और वे बात-बात पर चिड़चिड़ाने लगते हैं। जो उनके तनाव को और अधिक बढ़ाने का काम करता है। खासतौर पर प्राइवेट सेक्टर में काम करनेवाले युवाओं पर करियर में ग्रोथ और खुद को प्रूव करने का इतना दबाव रहता है कि वे चाहकर भी अपने इंट्रस्ट और हॉबीज के लिए वक्त नहीं निकाल पाते हैं। हर समय खुद को जज किया जाना और कदम-कदम को खुद पर द बेस्ट प्रूव करना उन्हें निर्धारित समय से अधिक काम करने को मजबूर कर रहा है। प्राइवेट सेक्टर में जॉब करने वाला हर इंसान इस दर्द को समझता है कि आखिर काम का दबाव होता क्या है! टाइम लाइन में बंधकर काम करना, डेडलाइन के भीतर परफॉर्म करना और बेहतर से बेहतर रिजल्ट देने की कोशिश का तनाव होना।

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