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आज भी लोगों के दिलों में छाये हैं राज कुमार 

आज भी लोगों के दिलों में छाये हैं राज कुमार 

आज भी लोगों के दिलों में छाये हैं राज कुमार 
राज कुमार एक ऐसे अभिनेता थे जो अपने दमदार डायलॉग के कारण आज भी लोगों के दिलों में छाय हुए हैं। उनका  डायलॉग बोलने का एक अलग ही अंदाज था जो किसी भी अन्य अभिनेता के पास नहीं था।  राजकुमार ने अपने 42 साल के करियर में भूमिकाएं भी पुलिस वालों, आर्मी ऑफिसर्स और ठाकुरों की कह हैं। फिल्मों में वह खलनायकों और विरोधियों पर ऐसे डायलॉग मारते थे कि सामने वाला बेइज्जती से पहले ही मर जाता था। बेहतरीन अदाकारी के इतर राज कुमार की विरासत उनके डायलॉग और बेजोड़ स्टाइल है। इस मामले में लाइन में सब उनके बाद ही खड़े होते हैं। राजकुमार 8 अक्टूबर 1926 को बलूचिस्तान में जन्मे थे और 3 जुलाई 1996 को गले के कैंसर के कारण उनकी मौत हो गयी। उनकी याद, उनके संवादों में हमेशा बनी रहेगी। 
राजकुमार की फिल्मों के डायलॉग जो छाये रहे : 
जब राजेश्वर दोस्ती निभाता है तो अफसाने लिक्खे जाते हैं और जब दुश्मनी करता है तो तारीख़ बन जाती है। राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)
जिसके दालान में चंदन का ताड़ होगा वहां तो सांपों का आना-जाना लगा ही रहेगा।
पृथ्वीराज, बेताज बादशाह (1994)
चिनॉय सेठ, जिनके अपने घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते।
राजा, वक्त (1965)
बेशक मुझसे गलती हुई. मैं भूल ही गया था, इस घर के इंसानों को हर सांस के बाद दूसरी सांस के लिए भी आपसे इजाज़त लेना पड़ती है और आपकी औलाद ख़ुदा की बनाई हुई ज़मीन पर नहीं चलती, आपकी हथेली पर रेंगती है।
सलीम अहमद ख़ान, पाक़ीज़ा (1972)
जब ख़ून टपकता है तो जम जाता है, अपना निशान छोड़ जाता है, और
चीख़-चीख़कर पुकारता है कि मेरा इंतक़ाम लो, मेरा इंतक़ाम लो।
जेलर राणा प्रताप सिंह, इंसानियत का देवता (1993)
जानी.. हम तुम्हे मारेंगे, और ज़रूर मारेंगे.. लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी और वक़्त भी हमारा होगा.
राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)
हम वो कलेक्टर नहीं जिनका फूंक मारकर तबादला किया जा सकता है। कलेक्टरी तो हम शौक़ से करते हैं, रोज़ी-रोटी के लिए नहीं। दिल्ली तक बात मशहूर है कि राजपाल चौहान के हाथ में तंबाकू का पाइप और जेब में इस्तीफा रहता है। जिस रोज़ इस कुर्सी पर बैठकर हम इंसाफ नहीं कर सकेंगे, उस रोज़ हम इस कुर्सी को छोड़ देंगे समझ गए चौधरी।

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