इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में मणिपुर के नोंगसेकमई एवं थोंगजाओ क्षेत्र से आये मैंतई समुदाय के मान्यताये, अनुष्ठान एवं पारम्परिक ज्ञान पद्धतियों को संरक्षित करने हेतु वहां से आये पारम्परिक कुम्हार कलाकार मैंतई समुदाय में प्रचलित लोक विश्वास की मिथिकीय स्वरुप (पफल) को मिट्टी में आकर प्रदान कर रहे है। मणिपुर के मैतेई लोग अपनी उत्पत्ति अजगर के दैवीय रूप से मानते है जो लोकटक झील में निवास करता है। मैतेई आस्था के अनुसार पुण्यात्मा राजा नांग्दा लाइरेन पाखांग्बा रात में मनुष्यों की तरह रहते हैं और अपने आप को अजगर के दैवीय रूप में भी बदल सकते हैं। पाखांग्बा के द्वारा लिये गये ये विविध दैवीय रूप पाफल लाम्बुबा कहलाने वाली चित्रित पांडुलिपियों में उपलब्ध हैं जिसमें पाखांग्बा के 364 प्रतिनिधि रेखा चित्र शामिल हैं जो पाफल के रूप में जाने जाते हैं। इन स्वरूपों की मान्यता स्थान देवता के रूप में है। मैतेई समाज की सामाजिक-धार्मिक, और राजनैतिक संरचना में पाखांग्बा के इन विविध रूपों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। अजगर की प्रासंगिकता मात्र धार्मिक सम्प्रदाय या शाही वंशानुक्रम के महिमा गान मात्र से ही सम्बद्ध नहीं है बल्कि मणिपुर के लोक जीवन में भी इसकी महत्वपूर्ण सांस्कृतिक भूमिका है। नागों के प्रति हिन्दू आस्था एवं चीन के ड्रेगन पंथ से अलग मणिपुर का अजगर पंथ सांस्कृतिक अभिमिश्रण का अनूठा उदाहरण है।
मणिपुर के आये कुम्हार स्थानीय विश्वासों एवं अनुष्ठानों को गहनता से मानने वाले लोगों की घरेलू उपयोगिताओं सहित सामाजिक-धार्मिक परिधि को सहेजकर सांस्कृतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु विविध प्रकार के मृदभांडों का निर्माण कर रहे है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक के विविध अनुष्ठानों एवं पारंपरिक उत्सवों में प्रयोग किए जाते है।
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मैतई समुदाय के स्वरुप(पफल) को मिट्टी में आकार प्रदान कर रहे कलाकार