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 मालिक ने जाने को कहा तो 7 माह की बच्ची, मां व पत्नी के साथ छपरा के लिए पैदल चल पड़ा राजकुमार -दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों की रुला देने वाली कहानी

 मालिक ने जाने को कहा तो 7 माह की बच्ची, मां व पत्नी के साथ छपरा के लिए पैदल चल पड़ा राजकुमार -दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों की रुला देने वाली कहानी

 देश में लॉकडाउन की घोषणा होते ही हजारों प्रतिष्ठानों ने अपने-अपने कर्मचारियों को घर जाने का फरमान सुना दिया। ऐसा ही आदेश गुरुग्राम में नौकरी करने वाले राजकुमार को भी मिला है। उसके मालिक ने कहा फिलहाल घर जाओ और वहीं रहो। राजकुमार का घर तो हजार किमी से भी दूर बिहार के छपरा में हैं। उसके पास सिर्फ 1 हजार रुपए हैं और इसका कोई अता-पता नहीं कि अगली सैलरी कब आएगी। ऐसे में गुरुग्राम में ही पड़े रहने का कोई मतलब नहीं। उनके साथ मुश्किल यह है कि उनके जाने का कोई साधन भी नहीं। राजकुमार ने अपनी पत्नी, तीन महीने की बच्ची और 58 वर्ष की मां के साथ बुधवार को अहले सुबह पैदल ही अपने गांव के लिए चल पड़े। उनकी तरह कई और लोग सड़क पर पैदल चलते मिले, इस उम्मीद में कि घर पहुंचने का कुछ-न-कुछ रास्ता तो निकल ही जाएगा। 
पैदल मार्च पर निकले लोगों का झुंड शाम तक यूपी पहुंच गया। उन्होंने दिनभर में दिल्ली को पार करते हुए 50 किमी की दूरी तय कर ली थी। कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें खाने का पैकेट दिए। दिल्ली-एनसीआर से अचानक निकलने वालों की ऐसी कई समूह सड़कों पर हैं, जो लोग गांव लौट रहे हैं, उनमें ज्यादातर फैक्ट्री और दिहाड़ी मजदूर हैं। फैक्ट्रियां और काम-धंधे बंद होने के कारण वे अचानक बेरोजगार हो गए हैं। उनका गांव की ओर पलायन सरकार के लिए भी चिंता का सबब बन गया है,  क्योंकि लॉकडाउन का मकसद ही खतरे में आ गया है, जो लोगों की आवाजाही रोकना है। 
बुधवार शाम तक गाजियाबाद पहुंच चुके राजकुमार ने कहा, मैं कमरे का किराया कैसे दे पाऊंगा? घर लौटने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था। सब सामन्य होने के बाद जब मालिक का कॉल आएगा तभी मैं लौटूंगा। मनोज ठाकुर गाजियाबाद के वैशाली की एक फैक्ट्री में काम करते हैं। आनंद विहार बस टर्मिनल से उन्हें कोई साधन नहीं मिला तो 10 घंटे पैदल चलकर दादरी तक पहुंचे। उन्होंने बताया मैं फैक्ट्री के करीब किराए के कमरे में रहता हूं। मैं 3 बजे शाम को पैदल चलना शुरू किया और रात 1 बजे दादरी पहुंचा। मेरे पास खाना है, लेकिन पानी नहीं है। हाइवे पर एक भी दुकान भी खुली नहीं है। मनोज को यूपी के एटा जिला स्थित अपना घर पहुंचने के लिए अब भी 160 किमी पैदल चलना था। 
 

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