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जोखिम भरा है असुरक्षित सेक्स, हो सकती है एचआईवी से भी ज्यादा घातक बीमारी

 जोखिम भरा है असुरक्षित सेक्स, हो सकती है एचआईवी से भी ज्यादा घातक बीमारी

असुरक्षित यौन संबंध न केवल स्वास्थ्य पर असर डालता बल्कि बेहद जोखिम भरा होता है जो आपके जीवन को भी खत्म कर सकता है। इस असावधानी से एचआईवी के अलावा भी कई अन्य खतरनाक व लाइलाज बीमारियां हो सकती हैं। इन दिनों माइकोप्लैज़्मा जेनिटेलियम (एमजी) नाम की बीमारी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि एचआईवी की ही तरह यह बीमारी भी काफी तेजी से फैल रही है। आशंका है कि यह 'सुपरबग' साबित हो सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार 'ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ सेक्शुअल हेल्थ ऐंड एचआईवी' ने हालात की गंभीरता को देखते हुए बीमारी के बारे में एडवाइजरी भी जारी कर दी है। विशेषज्ञों के अनुसार माइकोप्लैज़्मा जेनिटेलियम (एमजी) बीमारी के कोई शुरुआती लक्षण नहीं होते, लेकिन इससे महिला और पुरुष, दोनों के जननांगों में संक्रमण हो सकता है। ये इतना खतरनाक है कि इससे औरतों में बांझपन भी हो सकता है। इसके शुरुआती लक्षण आसानी से समझ में नहीं आते इसलिए इसका इलाज भी मुश्किल है और अगर इलाज ठीक से न हो तो इस पर ऐंटिबायॉटिक्स का असर भी खत्म हो जाता है।
एमजी एक जीवाणु है जिससे पुरुषों और महिलाओं को पेशाब के रास्ते में सूजन हो सकती है। इसका नतीजा दर्द, रक्तस्राव और बुखार के रूप में देखने को मिलता है। एचआईवी की तरह ही असुरक्षित यौन संबंध को इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है। ऐसे में कॉन्डम का इस्तेमाल ही संक्रमण को रोकने के लिए सबसे बड़ा उपाय है। इस बीमारी के बारे में पहली बार ब्रिटेन में 1980 के दशक में पता चला था। उस समय सिर्फ 1 से 2 फीसदी आबादी ही प्रभावित थी। एमजी की जांच के लिए हाल में कुछ टेस्ट किए गए हैं, लेकिन ये सभी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं हैं। इसका इलाज, दवाइयों और ऐंटिबायॉटिक्स से मुमकिन है। इस बीमारी के इलाज के लिए ऐंटिबायॉटिक्स को सबसे कारगार माना जाता था, लेकिन देखने में आ रहा है कि इसके इलाज के लिए इस्तेमाल में आने वाली ऐंटिबायॉटिक्स 'मैक्रोलिड्स' का असर दुनिया भर में कम हुआ है। ब्रिटेन में लोगों पर इसके असर में तकरीबन 40% कमी आई है। हालांकि एक दूसरी ऐंटिबायॉटिक 'एज़िथ्रोमाइसिन' काफी मददगार साबित हो रही है। डॉ. पीटर ग्रीनहाउस का कहना है कि लोगों में एमजी को लेकर जितनी जागरूकता होगी, इसकी रोकथाम में उतनी ज्यादा मदद मिलेगी। 

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