एक रिसर्च में पाया गया है कि भारत में धूल से दमा और कॉकरोच से एलर्जी के मामले बढ़ रहे हैं। इसके सबसे ज्यादा पुरुष इसके शिकार हैं। यह विश्लेषण 5 साल की अवधि में किया गया है। इस रिसर्च में 63 हजार से अधिक मरीजों में ऐलर्जी की जांच के लिए ब्लड आईजीई लेवल का परीक्षण किया गया। विश्लेषण में हालांकि ऐलर्जी रिऐक्टिविटी के लिए जोनल वेरिएशन सामने नहीं आए हैं। इसमें पाया गया है कि 30 साल से कम आयु वर्ग के युवाओं में ऐलर्जन रिऐक्टिविटी ज्यादा है। अध्ययन का एक रोचक परिणाम यह भी है कि देश के विभिन्न हिस्सों में ऐलर्जी के 60 फीसदी से अधिक मामलों का कारण कॉकरोच है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इन परिणामों पर अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के सलाहकार डॉ बी आर दास ने कहा कि 'ऐलर्जिक रिऐक्शन मध्यम से गंभीर प्रवृत्ति के हो सकते हैं। यह जरूरी है कि लोग ऐलर्जी का कारण जानें, ताकि इनसे बच सकें। पिछले दो दशकों के दौरान ऐलर्जी के लिए लैब जांच प्रक्रिया में जबरदस्त सुधार आया है। आजकल साधारण सी रक्त जांच के द्वारा कई ऐलर्जन्स का पता चल जाता है। हम जानते हैं कि ये कारक ऐलर्जी के लक्षणों को और गंभीर बना देते हैं। ऐसे में एलर्जी की जांच बेहद फायदेमंद हो सकती है। हमारे विश्लेषण के लिए देशभर की प्रयोगशालाओं से आंकड़े जुटाए गए और इन आंकड़ों के माध्यम से हमने ऐलर्जी के कारणों को पहचानने की कोशिश की। हालांकि धूल में छिपे कण ऐलर्जिक अस्थमा का सबसे आम कारण पाए गए हैं।' डॉ अविनाश फड़के ने इस बारे में कहा, 'बच्चों में अस्थमा के 90 फीसदी और वयस्कों में 50 फीसदी मामलों का कारण ऐलर्जिक रिऐक्शन होता है। यह मूल रूप से ऐलर्जी के कारणों जैसे धूल, पराग, घास, कीड़े, घरेलू जानवरों के रोंए आदि के लिए शरीर की प्रतिक्रिया होती है। यहां तक कि कई बार खाद्य पदार्थ भी ऐलर्जी का कारण हो सकते हैं। वास्तव में ऐसा इसलिए होता है कि शरीर इन हानिरहित पदार्थों को अपने लिए हानिकारक मान लेता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली आईजीई वर्ग के ऐंटीबॉडी बनाने लगती हैं। साथ ही शरीर में हिस्टामाइन जैसे रसायन भी बनने लगते हैं। यह नाक में कंजेशन, नाक बहना, आंखों में खुजली और त्वचा पर लाल दाने और कुछ लोगों में अस्थमा का कारण बन जाता है।'
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धूल से दमा और कॉकरोच से हो रही एलर्जी