एक हालिया मेडिकल सर्वे में पाया गया है कि भारत में 74 प्रतिशत महिलाओं को विटमिन डी की कमी से जूझना पड़ रहा है। खास तौर से उत्तर भारत की महिलाओं की इस मामले में स्थिति ज्यादा खराब है। विटमिन डी की कमी से महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस, डायबीटीज, जोड़ों में दर्द और पैरों की सूजन जैसी दिक्कतों की चपेट में आने का खतरा बढ़ रहा है। दिल्ली के एक सीनियर फिजिशन कहते हैं कि भारतीय महिलाओं में विटमिन डी की कमी का एक प्रमुख कारण तो यह होता है कि देश में ज्यादातर महिलाएं साड़ी, सलवार-कुर्ता जैसे परिधान पहनती हैं। इसके कारण उनका शरीर विटमिन डी बनाने वाले प्रमुख स्रोत- सूरज की किरणों को पूरी तरह से समाहित नहीं कर पाता। अभी तक घरेलू महिलाओं में ही विटमिन डी की कमी पायी जाती थी। इसकी वजह यह कि कामकाज की वजह से महिलाएं घर के अंदर ज्यादा रहती हैं, इस वजह से वे सूरज की रोशनी से महरूम रहती हैं लेकिन अब कामकाजी महिलाओं में भी विटमिन डी की कमी देखा जा रही है क्योंकि कामकाजी महिलाएं भी ज्यादा समय तक ऑफिस में ही रहती हैं और सूरज की रोशनी से वंचित रहती हैं।
अगर महिलाऍं बाहर भी जाती है तो टैनिंग से बचने के लिए चेहरे और शरीर के सभी अंगों को कपड़े से इस तरह ढक लेती हैं कि सूरज की रोशनी स्किन तक नहीं पहुंच पाती। इसके साथ ही मेनॉपॉज के बाद एस्ट्रोजन नाम के हॉर्मोन की कमी भी शरीर में विटमिन डी को जज्ब होने से रोकती है। कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि देश में रिफाइंड तेलों का बढ़ता इस्तेमाल भी विटमिन डी की कमी का कारण बन रहा है। इसकी वजह यह है कि रिफाइंड तेलों में ट्रांस फैट होता है। इसके कारण शरीर में कलेस्ट्रॉल मॉलिक्यूल कम बनते हैं। यह शरीर में विटमिन डी के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। विटमिन डी सप्लिमेंट लिया जा सकता है। विटमिन डी अंडे के पीले हिस्से, मशरूम, थोड़ा बहुत हरी सब्जियों और कुछ खास मछलियों जैसे सैल्मन और ट्यूना में भी मिलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुदरती तौर पर शरीर में विटमिन डी की कमी को रोकने का सबसे बढ़िया उपाय सूरज की रोशनी में रहना है। यदि सुबह या शाम के समय करीब एक घंटे तक सूरज की रोशनी में रहा जाए तो विटमिन डी की कमी से बचा जा सकता है।
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उत्तर भारत की महिलाओं में विटमिन डी की कमी : सर्वे