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कोश्यारी की चुप्पी से बढ़ी उद्धव की टेंशन

कोश्यारी की चुप्पी से बढ़ी उद्धव की टेंशन

मुंबई। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की धड़कनें तेज हैं। कोरोना के संक्रमण के बीच उद्धव के सामने अपनी कुर्सी बचाने की भी टेंशन है। मगर मनोनीत सदस्य के रूप में विधान परिषद भेजने के मुद्दे पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की खामोशी शिवसेना चीफ के लिए टेंशन बढ़ाने वाली है। उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत किए जाने का प्रस्ताव 10 दिन से राजभवन में लंबित है, लेकिन इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है। अब मुख्यमंत्री के पास सिर्फ 40 दिन बचे हैं। इस दौरान अगर वह विधान परिषद के लिए निर्वाचित या मनोनीत नहीं हुए, तो उनका मुख्यमंत्री पद अपने आप चला जाएगा। अगर ऐसा हुआ, तो कोरोना संकट के इस काल में राज्य को एक अभूतपूर्व संवैधानिक और राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार का ध्यान राजभवन के फैसले पर लगा है।
राजभवन के फैसले पर नजरें
6 अप्रैल को राज्य मंत्रिमंडल ने मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में और उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अध्यक्षता में हुई बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को भेजा था कि मौजूदा परिस्थिति में विधान परिषद के चुनाव नहीं हो सकते हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जो इस समय ना तो विधानसभा के सदस्य हैं और ना विधान परिषद के सदस्य हैं, उन्हें राज्यपाल की ओर से नामित किए जाने वाली विधानसभा की सीट के लिए मनोनीत किया जाए। इस प्रस्ताव को राज्यपाल के पास भेजे शुक्रवार को 11 दिन हो गए, लेकिन अब तक राजभवन ने न तो इसे स्वीकार किया है और न अस्वीकार। ऐसे में राज्य सरकार की नजरें राजभवन के फैसले पर टिकी हैं। दरअसल, राज्य में अभूतपूर्व स्थिति है। इससे पहले कभी ऐसी स्थिति पैदा नहीं हुई कि राज्यपाल को किसी मुख्यमंत्री को मनोनीत सदस्य के तौर पर विधान परिषद भेजने की जरूरत पड़ी हो।
तो इस्तीफा देना पड़ेगा
अगर राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की सिफारिश को अस्वीकार कर दिया तब क्या होगा? इस सवाल पर मंत्री ने कहा कि तब हमारे पास दो ही विकल्प होंगे एक तो 3 मई को लॉकडाउन खत्म होने के तुरंत बाद चुनाव आयोग विधान परिषद की खाली पड़ी सीटों के चुनाव का ऐलान करें और 27 मई से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी कर परिणाम घोषित करें, ताकि मुख्यमंत्री निर्वाचित सदस्य के रूप में सदन के सदस्य बन सकें। अगर चुनाव आयोग यह नहीं करता, तो फिर मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा देकर नए सिरे से शपथ लेनी पड़ सकती है। हालांकि इस प्रक्रिया में एक बड़ा पेच यह है कि मंत्रिमंडल की समस्त शक्तियां मुख्यमंत्री में निहित हैं। अगर मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा देते हैं, तो समूचे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ेगा और फिर से सभी मंत्रियों को शपथ दिलानी पड़ेगी।
विपक्ष में भी टेंशन
कोरोना संकट के इस भयानक मुश्किल दौर में मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे की भूमिका की पूरे राज्य में हो रही प्रशंसा से विपक्ष का टेंशन भी बढऩे लगा है। उद्धव ठाकरे जिस तरह सोशल मीडिया के जरिए राज्य की जनता से संवाद साध रहे हैं और बिना किसी आव या ताव के राज्य की जनता को इस तरह भरोसा दिला रहे हैं जैसे उनके परिवार का कोई सदस्य उनसे बात कर रहा हो। इसे जनमानस में उनकी छवि एक धीर गंभीर और शांति से फैसला लेने वाले नेता की बनी है।
 

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