प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा घटने से जहाँ ओजोन की छलनी परत जिसका पता 1985 में लगा था, ठीक होती दिख रही है। वहीं दक्षिणी गोलार्ध में हवा का बदलता रुख वैज्ञानिकों को अचंभित और प्रभावित कर रहा है। उन्हें अंदाजा तक नहीं हो पा रहा है कि अंटार्कटिका के ऊपर स्थिति सुधरने के बाद दक्षिणी हिस्से में हवा क्या असर दिखाएगी! रात-दिन सैटेलाइटों से इन गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। यह बहुत ही अच्छा संकेत है क्योंकि बारिश का नियम बदल जाने से आस्ट्रेलिया में अकाल की नौबत आई जो दक्षिणी गोलार्ध की तेज हवाओं से बारिश की दिशा बदलने से बनी थी।
क्या कोई अभिशाप, किसी के लिए वरदान भी हो सकता है? थोड़ा अटपटा जरूर है लेकिन आज विश्व के सामने मौजूद सबसे बड़ा अभिशाप कोरोना मानवता की पालनहारी प्रकृति और पर्यावरण के लिए वरदान जैसे सामने खड़ा है! पूरी दुनिया जिस पर्यावरण की रक्षा और चिन्ता के लिए बड़ी-बड़ी बैठकें और कार्य योजनाएं बनती रहीं, वैश्विक चिन्तन होता रहा, बड़े-बड़े धनकोष बनाए गए, पानी के जैसे पैसे बहे लेकिन नतीजे कुछ खास नहीं निकला। वहीं यह काम एक अदृश्य वायरस कोरोना ने कर दिखाया। यकीनन मानवता पर भारी कोरोना ने बड़ी सीख और ज्ञान भी दिया। अब भी वक्त है चेतने और जाग उठने का वरना देर हुई और प्रकृति ने कहीं और भी बागी तेवर दिखाए तो क्या गत होगी यह सूक्ष्म से कोरोना ने पहले ही जता दिया है।
लॉकडाउन के बाद आसमान के ऊपर पृथ्वी के वायुमंडल में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है। वैज्ञानिक इससे भौंचक्के हैं। मानने को मजबूर हैं कि विश्वव्यापी लॉकडाउन से ही हुआ है। प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा घटने से जहाँ ओजोन की छलनी परत जिसका पता 1985 में लगा था, ठीक होती दिख रही है। वहीं दक्षिणी गोलार्ध में हवा का बदलता रुख वैज्ञानिकों को अचंभित और प्रभावित कर रहा है। उन्हें अंदाजा तक नहीं हो पा रहा है कि अंटार्कटिका के ऊपर स्थिति सुधरने के बाद दक्षिणी हिस्से में हवा क्या असर दिखाएगी! रात-दिन सैटेलाइटों से इन गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। यह बहुत ही अच्छा संकेत है क्योंकि बारिश का नियम बदल जाने से आस्ट्रेलिया में अकाल की नौबत आई जो दक्षिणी गोलार्ध की तेज हवाओं से बारिश की दिशा बदलने से बनी थी। वही हवा ठीक उल्टी बह रही है है। माना जा रहा है कि यह सब भी चीन के औद्योगिक प्रदूषण की देन है इसी से बारिश का क्रम बदला। जगजाहिर है प्रदूषण संबंधी सबसे ज्यादा उलंघन चीन ही करता है। मौजूदा स्थिति सीधे-सीधे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और ओजोन परत के ठीक होने के बीच का संघर्ष है और इसे समझना ही होगा। इटली के समुद्र तटों पर डॉल्फिन तैर रहे हैं दुनिया के तमाम हवाई अड्डों पर दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का एयरपोर्ट बन्द होने से मजमा लगा है। मुंबई की सड़कों पर मोर नाच रहे हैं तो कई शहरों की सड़कों पर शेर, हाथी, हिरण, भालू और दूसरे जंगली पशु विचरण कर रहे हैं। गरम इलाके के लोगों का हवा से जलन भी नहीं हो रही है।
यह क्या जिस जिस कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में लॉक डाउन के हालात पैदा कर दिए। एकदम से दुनिया की रफ्तार थम गई और इंसान को घरों में कैद करके रख दिया, उसी ने प्रकृति को उसका खोया हुआ स्वरूप लौटाना शुरू कर दिया। वह कर दिखाया जिसको लेकर दशकों बल्कि कहें अर्ध शताब्दी या उससे भी ज्यादा समय से खूब माथा पच्ची हो रही है लेकिन नतीजा कुछ खास निकला नहीं। उसी कोरोना ने पन्द्रह दिन में ही वो कर दिखाया जिसने जानकार होने व हर समस्या का हल ढ़ूढ़ने की इंसानी गलतफहमीं को चुटकियों में रौंद दिया।
नदियाँ बुरी तरह से गंदी, मैली, कुचैली हो गईं और आलम ऐसा कि बिना प्यूरीफाई किए इनका पानी जीवन के लिए घातक साबित हो रहा था, वातवरण में मौजूद हवा एक-एक साँस पर भारी पड़ रही थी। बच्चे, बड़े, बूढ़े यहाँ तक कि पशु, पक्षी, कीट, पतंगे सभी में एक अलग सी बेचैनी और अनकही छटपटाहट दिख रही थी, ऊपर आसमान में अजीब सी धुंध का दिखना रोजमर्रा में शामिल हो चुका था। दुनिया के तमाम शहरों में तारों का टिमटिमाना किताबों में कैद लकीरें बन कर कहानी जैसे रह गईं थी, कभी नंगी आँखों से कोसों दूर मौजूद पहाड़ दिखना बीती बातें बन गईं, अप्रेल के दूसरे हफ्ते में आबादी वाले घने क्षेत्रों में जहाँ-तहाँ बहने वाली ठण्डी व सुकून देती हवा का झोंका सपना हो गया था। आसमान का रौद्र रूप तो भूगर्भ से चुकता पानी समूचे जीवन के लिए चुनौती और विनाश की दस्तक सा डरावना लग रहा था। तभी एक आँखों से न दिखने वाले खतरनाक वायरस ने वो सब कर दिखाया जो इस दौर में असंभव था और तरक्की दर तरक्की की इबारत लिखने वाले, जमीन से आसमान और मंगल तक को मुट्ठी में भींचने की योजनाएँ बनाने वाले धरती के सबसे सभ्य जीव मनुष्य का जैसे दंभ ही तोड़ दिया और आँखें खोल दी!
बात हवा की करें स्पेन हो या फ्रांस या फिर इंग्लैंड, अमेरिका, चीन यानी दुनिया में कहीं भी कल तक जो हवा खुद बीमार थी आज साफ हो गई। तमाम तरह के प्रदूषण से युक्त हवा सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंच कई असाध्य और दूसरे रोगों को बढ़ा रहे थे। इससे उपजी अनगिनत और अनजान बीमारियाँ शरीर तोड़ रही थी। यह सब सड़कों पर दौड़ते असंख्य वाहनों, पटरियों पर दौड़ती रेल, आसमान में उड़ते बड़े-बड़े हवाई जहाज और पानी मे तैरते शिप में जलकर खपत होने वाले ईधन जो जहरीली हवा में तब्दील हो जाते हैं की देन थी। अपने देश को देखें तो फिलाहाल दिल्ली की वायु गुणवत्ता 21 वीं सदी में सबसे न्यूनतम स्तर पर आ टिकी है। एयर क्वालिटी इण्डेक्स जो ठण्ड में कई बार खतरनाक स्तर 475 से 500 तक पहुंचता है और मार्च में 100 से 150 के बीच होता है अब अधिकतम 65 और न्यूनतम 25 पर आ गया है। अमूमन 0 से50 अच्छा, 51 से 100 संतोषजनक, 101 से 200 मध्यम, 201 से 300 खराब, 301 से 400 बहुत खराब और 401 से 500 या ऊपर गंभीर श्रेणी मानी जाती है। जाहिर है वायु प्रदूषण तेजी से घटा है जो पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा सुकून है। कमोवेश बिल्कुल यही हालत पूरे देश में है जो नमूने के तौर 90 शहरों में प्रदूषण की माप से पता चली। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े भी फिलाहाल दिल्ली में हवा की अच्छी गुणवत्ता की तस्दीक करते हैं। जबकि कानपुर जो ज्यादा प्रदूषित रहता था अब ठीक है। वहीं 39 शहरो में अच्छी व 51 शहरों में संतोषजनक स्थिति है जिसमें मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, नोएडा, चंडीगढ़, कानपुर, कोच्चि, उदयपुर जैसे शहर शामिल भी है। वहीं वाराणसी और ग्रेटर नोएडा सहित14 शहरों में वायु गुणवत्ता सामान्य श्रेणी में पहुंच गई है। इसी तरह केंद्रीय वायु एवं मौसम अनुमान और अनुसंधान संस्थान यानी एसएएफएआर की रिपोर्ट बताती है लॉकडाउन के बाद दिल्ली में फाइन पार्टिकुलेट पॉल्युटैन्ट में 30 प्रतिशत और अहमदाबाद एवं पुणे में 15 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं सांस को प्रभावित करने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड के प्रदूषण के स्तर में भी भारी कमी आई जो मुख्य रूप से भारी और मझौले मोटर वाहनों के परिवहन से होता है। इसमें भी मुंबई में 38, पुणे में 43, और अहमदाबाद में 50 प्रतिशत की कमी आई है। है।
दुनिया में जहाँ-जहाँ भी कभी चन्द्रमा की झिलमिलाहट नहीं दिखती थी दिखने लगी है। कोरोना के जनक चीन सहित अमेरिका और दुनिया भर का आसमान साफ हो गया है। हमारे यहाँ बिना दूरबीन के ही सप्तऋषि मण्डल, बुध, वृहस्पति, शनि, वरुण की झिलमिलाहट नई पीढ़ी ने पहली बार देखी होगी। अब तो ध्रुव तारा भी साफ पहचान में आने लगा है। बीते आठ साल में इसी 3 अप्रैल को एक और संयोग बना जो बहुतों ने देखा, कृतिका नक्षत्र के बेहद चमकीले हो गए शुक्र के पास होने से गजब का मनमोहक दृश्य दिखा।भारत की तमाम नदियों का पानी साफ हो गया। कल-कारखाने बन्द होने से नदियों में मिलने वाला दूषित रसायन और गन्दे पानी का मिलना रुक सा गया है। लॉकडाउन से पहले काले पानी से लबालब यमुना, गंगा, सोन और दूसरी तमाम नदियों स्वच्छ, शांत और निर्मल भाव से बहने वाला पानी जहाँ आनन्दित करता है वहीं तमाम नदियों के घाटों पर पक्षियों का कलरव एक अलग ही छटा प्रस्तुत कर रहा है। नर्मदा और सोन सहित कितनी ही नदियों के तटों में जारी रेत का अवैध उत्खनन लॉकडाउन के चलते थमने से उनकी एक अलग ही छटा दिख रही है। नदियाँ अपने पूर्ववत शांत स्वाभाव में बहती हुई मानों यह कह रही हैं कि इंसान तूने प्रकृति का चीरहरण कर खुद को ही तो चुनौती दी है, अब भी वक्त है चेत जा।
कोरोना संक्रमण के इस दौर में विशेषज्ञ नदियों की अपने स्तर पर की जाने वाली साफ-सफाई को एक भावी मॉडल के रूप में देख रहे हैं ताकि भविष्य में सभी नदियों को पुनर्जीवित करने का रास्ता बन सके। यदि केंद्र व राज्य सरकारों ने लॉकडाउन के दौरान नदी की खुद को स्वच्छ करने के इस नैसर्गिक मॉडल को समझ लिया तो मानों प्रकृति के साथ चलने का तरीका भी सीख लिया। जाहिर है भारत ही नहीं दुनिया भर में इससे पानी की कमीं की समस्या दूर होगी। उधर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली जल बोर्ड इस तरह के बदलावों का अध्ययन करने की योजना तैयार कर रहा है। सीपीसीबी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि बोर्ड जल्द ही नदी से सैंपल लेगा।
यकीनन लॉकडाउन हमें खुद को फिर से फॉर्मेट करने का मौका है ताकि हम जिन्दगी की नए व पर्यावरण संरक्षक प्रोग्रामिंग कर लें। यही वक्त है जब दुनिया आपा-धापी से दूर घरों में कैद है और सलीके से सोच विचार कर अमल कर सकती है ताकि भावी चुनौतियों पर भी आँखें खुलें और हम सतर्क हो जाएं।
(लेखक-ऋतुपर्ण दवे )