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मध्यप्रदेश में बनेगा ५ सदस्यीय मंत्रीमंडल ?

मध्यप्रदेश में बनेगा ५ सदस्यीय मंत्रीमंडल ?

भोपाल  । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  अंतत: अपने मंत्रीमंडल के गठन पर राजी हो गए हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया की भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद छोटा मंत्रीमडंल गठित करने पर सहमति बन गई है। उच्च स्तरीय सूत्रों के अनुसार मंगलवार को ५ कैबिनेट मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। जिनमें ३ भाजपा और दो ज्योतिरादित्य खेमे से होंगे। कोरोना महामारी देखते हुए प्रदेश में मंत्रीमंडल का गठन बीते ३० दिनों से लटका हुआ था। शिवराज बिना मंत्रीमंडल के मुख्यमंत्री बने रहने का 30 दिन का रिकार्ड बना चुके हैं। बिना मंत्रीमंडल की शिवराज सरकार को लेकर कांग्रेस के विवेक तंखा जैसे दिग्गज नेताओं ने राष्ट्रपति को दो बार पत्र लिखे। मंगलवार को गठित होने वाले मंत्रीमंडल में सिंधिया समर्थक गोविन्द सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट तथा भाजपा से नरोत्तम मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह और एक महिला नेत्री संभवता: यशोधरा राजे शामिल हो सकतीं हैं। दरअसल, जब भी मंत्रिमंडल गठन की कवायद शुरू होती थी शिवराज के सामने कोई न कोई समस्या आ खड़ी हो रही थी। वर्तमान में मंगलवार को जो मंत्रीमंडल गठन होने जा रहा है, उसमें चंबल-ग्वालियर और मालवा का दबदबा रहेगा। एक ही क्षेत्र से अनेक दिग्गज नेता होने के कारण शिवराज को भविष्य में मंत्रीमंडल विस्तार के समय क्षेत्रीय संतुलन बनाने में कठिनाई जा सकती है। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मंत्रीमंडल विस्तार मई के दूसरे सप्ताह में किया जा सकता है, जिसमें लगभग २५ नए चेहरों को जगह मिलेगी। सभी क्षेत्रों से दावेदार होने के कारण मंत्रीमंडल विस्तार चुनौती पूर्ण रहेगा। इस खबर अधीकृत पुष्टि नहीं हुई है। मीडिया में पांच मंत्रियों को शामिल करने की खबर है।
सिंधिया को किया जा रहा था बदनाम
प्रदेश की राजनीतिक वीथिका में भाजपा द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा था कि मंत्रिमंडल गठन में ज्योतिरादित्य सिंधिया मनमानी कर रहे हैं। लेकिन सिंधिया समर्थक एक पूर्व विधायक का कहना था कि भाजपा में ही मंत्री बनने की होड़ मची हुई है। इस कारण मंत्रिमंडल विस्तार में देरी हो रही है। वहीं भाजपा में यह चर्चा भी चल रही थी कि शिवराज ने राजनीति की बारीकियां पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुदरलाल पटवा से सीखी हंै। इसलिए वे उन्हीं की तरह राजनीति कर रहे हैं। अपने बराबरी वाले नेताओं के बीच आपसी द्वंद कराकर वे अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं।
 

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