कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को लाकडाउन लागू करने की घोषणा की थी। इसके बाद इसे 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है। लाकडाउन को लेकर जो सोशल डिस्टेंसिंग की बात कही जा रही है। कहीं-कहीं इसे फिजिकल डिस्टेंसिंग भी कहा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लाकडाउन बढ़ाने की घोषणा की। तब उन्होंने बड़े सुंदर शब्दों से लाकडाउन बढ़ाने का जो संदेश दिया। उससे जनता जरुर प्रभावित हुई। किंतु इतने लंबे लॉकडाउन के कारण भारत में कई ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं, जिनका निराकरण लॉक डाउन के चलते संभव ही नहीं है।
भारत में लगभग 30 करोड़ परिवार एक या दो कमरे के मकान और झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं। प्रत्येक परिवार में 4 से 5 सदस्य होते हैं।10x10 के एक कमरे में कैसे फिजिकल डिस्टेंसिंग बना कर रखी जा सकती है। यह आसानी से समझा जा सकता है।इसके अलावा सारे देश में घनी बस्तियों के बीच लोग झुग्गी झोपड़ी और छोटे छोटे से मकानों में रहते हैं। मिडिल क्लास तथा हाई क्लास सोसायटी के बीच यही लोग रोजाना विभिन्न कामों के लिए पहुंचते हैं।ऐसी स्थिति में भारत में सोशल डिस्टेंसिंग और फिजिकल डिस्टेंसिंग संभव ही नही है।
कोरोनावायरस के संक्रमण से बचाव के लिए सही तरीके से लोगों को बचने के लिए साबुन से हाथ धोने, सेनीटाइज करने, मुंह में गमछा अथवा मास्क लगाकर घर से बाहर गरम पानी पीने निकलने के बारे में जानकारी देकर इसका पालन कराया जाता, तो भी कोरोनावायरस के इस संक्रमण से आसानी से बचाव किया जा सकता था।
पिछले 28 दिनों से लॉक डाउन के दौरान देशभर से जो खबरें आ रही हैं।उसमें लोग परेशानी के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। कोरोनावायरस के भय से सातवीं मंजिल से कूदने और आत्महत्या करने के समाचार भी आने लगे हैं। लाकडाउन के परिणामों से संबंधित 3 स्वयंसेवी संगठनों ने जो सर्वे किया है। उसके अनुसार लगभग 195 मौतें डिप्रेशन और भोजन के अभाव में होने की बात सामने आई है। यह आंकड़ा बड़े शहरों का है। लेकिन गांव देहात और अन्य जगह जहां पर इस तरीके की कोई रिपोर्ट नहीं हुई। समाचार पत्रों एवं स्थानीय मीडिया में प्रकाशित खबरों की माने तो लॉकडाउन के कारण मृतकों की संख्या हजारों में पहुंच गई है।
भारत जैसे देश में करोड़ों लोग असंगठित क्षेत्र में घरेलू कामकाज खेती के काम काज तथा व्यापारिक और सर्विस के क्षेत्र में काम कर रहे थे। लॉक डाउन के कारण दो करोड़ से ज्यादा कामगार बेरोजगार हो गए हैं। रोजाना कमाने खाने वाले लाखों मजदूर लॉकडाउन के बाद सैकड़ों किलोमीटर चलकर लॉकडाउन तोड़कर अपने घरों की ओर रवाना हुए। जो जहां रह रहे हैं वहां पर भी फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पा रहा है। खेती किसानी का काम भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसके साथ ही लगभग एक माह से सारी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां ठप्प हो जाने से भारत आर्थिक दृष्टि से कई माह पीछे चला गया है। वहीं हजारों लोगों की लाकडाउन के कारण उपजी स्थितियों के कारण मौत हो गई है।
केंद्र एवं राज्य सरकारों को भारत जैसे देश की भौगोलिक और रहन-सहन को देखते हुए नियम कायदे कानून का पालन कराना था। वैश्विक मानदंड को मानने से आर्थिक रूप से देश काफी पिछड़ गया है। वहीं हजारों लोगों की जान भी चली गई है। ऐसी स्थिति में भारत मैं कोरोनावायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। हर आदमी अपनी मृत्यु से डरता है। यदि उसका पेट भरा होगा, तो उसे अपनी जान की भी चिंता होगी। यदि पेट खाली होगा, तो पहले वह पेट भरने का प्रयास करेगा। अपनी जान बचाने के बारे में बाद में सोचेगा। भूखा व्यक्ति जब स्वयं मर रहा होगा, तब वह दूसरों की चिंता क्यों करेगा। इस तथ्य का भी ध्यान रखना होगा। केंद्र एवं राज्य सरकारों को भारत के उन गरीब परिवारों के बारे में भी सोचना जरूरी है। जो एक या दो कमरे के एक छोटे से स्थान में या झोपड़पट्टी में रहते हैं। मुंबई जैसे शहर में एक छोटे से कमरे में कई लोग रहते हैं। जो 2 शिफ्ट में सोते हैं। वह रोजाना कमाते हैं,और रोजाना खाते हैं। आज भी भारत में करोड़ों लोग महानगरों और बड़े शहरों के फुटपाथ पर अपना जीवन बिताते हैं। समय रहते केंद्र एवं राज्य सरकारों को वास्तविकता का ध्यान रखते हुए निर्णय लेना चाहिए। तो यह सभी के लिए हितकारी होगा। जिस तरह से गरीब मजदूर और कामगार अपनी भूख को मिटाने के लिए फिजिकल डिस्टेंसिंग अथवा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर पा रहे हैं। उसके लिए उन्हें कोरोनावायरस के संक्रमण से बचाव के उपाय बताकर, उनसे जुड़े हुए लोग, जो उन्हें रोजगार दे रहे हैं।उन्हें जिम्मेदारी देकर कोरोना संक्रमण से बचाव करना चाहिए। जैसा लॉकडाउन भारत में अभी लागू हुआ है। वह भारत के लिए आगे चलकर बड़ा विनासकारी साबित होगा। सारी दुनिया में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव और ईलाज को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। कोई प्रामणिकता नहीं होने के बाद भी संक्रमण से बचाव बहुत जरुरी है। फिजिकल डिस्टेसिंग का पालन घर के बाहर आसानी से कराया जा सकता है।
(लेखक-सनत जैन)
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