यह प्रश्न बहुत दिनों से मन में कौंध रहा था पर वर्तमान में रामायण सीरियल देखने के बाद इस बाद कि पुष्टि हो चुकी हैं कि हम रावण वंशी हैं या रावण कि विचार धारा को मानने वाले हैं। इसके पीछे पुष्ट धारणाएं हैं जिनसे आप भी सहमत होंगे।
धार्मिकः कुलाचारअभिजन विशुद्धः प्रतापवान नयानुगतवृत्ति श्च स्वामी। (नीतिवाक्यामृत )
जो धार्मिक हो कुलीन सदाचारी और उत्तम कुटुंबवाला, प्रतापशाली तथा निति के अनुकूल आचरण करने वाला हो वह स्वामी हैं।
शुक्र ने भी इस बात की पुष्टि की हैं---
धर्मिको य:कुलाचारै विशुद्धः पुण्यवान नयी। स स्वामी कुरुते राजयं विशुद्धं राजकंटकेह.
यतीकंचनकारी स्वैः परिव्रा हन्यते।
स्वेच्छाचारी व्यक्ति आत्मीय जनों या शत्रुओं द्वारा मार दिया जाता हैं।
अत्रि ने भी इस बात की पुष्टि की हैं ---
अन्यायें प्रवृत्तस्य न चिरं सन्ति सम्पदः। एपीआई शौर्यसमेतस्य प्रभूतविभवस्य च।
परमर्मस्पर्शकरमश्रद्धेयमसत्यमतिमात्रम च न भाषेत।
नैतिक व्यक्ति दूसरों के हृदय को चोट पहुंचाने वाले, विश्वास के अयोग्य और अधिक मात्रावाले अर्थात बहुत ज्यादा और झूठ वचन न बोले।
इस बात की पुष्टि भागुरि ने भी की हैं ----
परमर्म न वक्तव्यं कायबाह्यं कथञ्चन। अश्रद्धेयम च विज्ञेयं या इच्छेद्वित्तमात्मनः.
उपरोक्त आधार प् यह चिंतन सामने आता हैं की रावण ने परस्त्री अपहरण छल से किया, पर एक शर्त रखी थी की वह जोर जबरदस्ती से बलात सेवन नहीं करेगा, उसके बाद मंदोदरी, विभीषण, कुम्भकरण, मेघनाद, रावण के नाना, माता, ससुर के साथ हनुमान, अंगद, सुग्रीव आदि ने रावण को उचित उसकी सुरक्षा के लिए सलाह दी पर उसकी हठधर्मिता, अहम्, अहंकार, ममकार, वासना,ईर्ष्या, बदले की भावना के कारण राम से संघर्ष किया और मृत्यु का वरण किया।
जिस प्रकार यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठिर से यह प्रश्न पूछा था की संसार का सबसे बड़ा सत्य क्या हैं ?तब उन्होंने जबाव दिया था की संसार में प्रत्येक क्षण यमराज के द्वारा प्राण लिए जाते हैं और उसके बाद भी मनुष्य मृत्यु से डरता हैं।
इसी प्रकार मानव समाज को जितना अधिक समझाया जाता हैं वह उतना ही अवज्ञाकारी होता हैं, उसमे रावण जैसे भाव होते हैं वह परिवार, समाज , देश के कानून को नहीं मानतावह रावण जैसा अहंकारी, अवज्ञाकारी हठधर्मी हैं। शासन प्रशासन द्वारा दिन रात समाचार पत्रों, टी वी चॅनेल सोशल मीडिया के माध्यम से समझाया जा रहा हैं, दिशा निर्देशों का पालन करना अनिवार्य हैं, घर से बाहर न निकले, सफाई पर ध्यान दे और हल्का आहार कर सत्साहित्य का स्वाध्याय करे पर हम कहने को राम के आदर्शों पर चलने वाले हैं पर रावण रूपी राक्षस प्रवत्ति को अंगीकार कर रहे हैं। इसका तात्पर्य हम रावण वंशी हैं।
जो अच्छाइयों को न माने
जो बुराइयों को अपनाये
हठधर्मिता, सलाहों का ना मने
हितैषियों को दुशमन समझे
उन्हें रावणवंशी कहने में क्या विषाद
घर में रहे, सुरक्षित रहे, स्वच्छता से रहे
यह ही हैं राम का सन्देश
राजाज्ञा का पालन करे राम के आदर्श का पालन करे।
(लेखक--डॉक्टर अरविन्द जैन)
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क्या हम रावणवंशी हो गए?