मुंबई । मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा केंद्र सरकार और महाराष्ट्र के अधिकारियों के लिए एक ऐसी व्यवस्था का विकास करना चाहिए, जिसमें कोरोना के अलावा अन्य मरीजों को भी प्रभावी उपचार उपलब्ध कराया जा सके। कोरोना रोगियों की देखरेख में लगा प्रशासनिक तंत्र केवल कोरोना मरीजों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा कि ‘गैर-कोविड-19’ मरीजों के इलाज के लिए प्रभावी समाधान तलाशना जरूरी है, ताकि कोरोना वायरस महामारी से संघर्ष के दौरान ऐसे रोगियों का इलाज करने से इंकार नहीं किया जाए। न्यायमूर्ति के आर श्रीराम ने तीन विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इन याचिकाओं में कई अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की पीड़ा का उल्लेख किया गया है, जिन्हें क्लिनिक और अस्पतालों से लौटा दिया जा रहा है। याचिकाओं में राज्य, निगम और निजी अस्पतालों में फिलहाल अपर्याप्त सुविधाओं और चिकित्सा ढांचे जैसे मुद्दों का भी जिक्र किया गया है।
न्यायाधीश ने कहा कि अधिकारियों को इन मुद्दों का गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए और महाराष्ट्र सरकार तथा बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को 29 अप्रैल तक इन याचिकाओं पर जवाब देने का निर्देश दिया है। केंद्र की ओर से पेश हुए वकील, अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत को बताया कि उच्चतम न्यायालय भी इसी तरह की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जहां केंद्र सरकार उठाए गए आवश्यक कदमों की जानकारी देगी। सिंह ने कहा कि इसलिए केंद्र सरकार के लिए यहां जवाब दायर करना जरूरी नहीं है।
न्यायमूर्ति श्रीराम ने कहा मैं संबंधित पक्षों से इन याचिकाओं को बेहद गंभीरता से लेने और अपने-अपने हलफनामे में प्रभावी समाधान के साथ सामने आने की उम्मीद करता हूं। उन्होंने कहा अन्य प्रतिवादी भी अपने सुझाव महानगरपालिका/ राज्य सरकार/ केंद्र सरकार को दे सकते हैं। दो वकीलों और शहर के एक कार्यकर्ता की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया कि खबरों और उनकी खुद की पड़ताल में सामने आया है कि कई गैर-कोविड-19 मरीजों को भर्ती करने या उनका इलाज करने से इनकार किया जा रहा है क्योंकि चिकित्साकर्मियों को अपने क्लिनिकों या अस्पतालों में कोरोना वायरस फैलने का डर है।
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कोरोना के साथ-साथ दूसरे मरीजों का भी उचित इलाज सुनिश्चित करे केंद्र व महाराष्ट्र सरकार : हाईकोर्ट