
नई दिल्ली । इंसान की जिज्ञासा कभी समाप्त नहीं होती उसने पूरे ब्रह्माण्ड को इसी मकसद से खंगाला और आगे भी सकारात्मक प्रयासों में लगा है। पृथ्वी के अलावा भी जीवन की संभावनाओं की खोज वैज्ञानिक जारी रखे हैं। इस खोज में दुनिया के वैज्ञानिकों दो तरह से लगे हुए हैं। एक तो वे ग्रह जहां जीवन पहले से ही हो और दूसरे वे ग्रह जहां अभी तक वहां जीवन नहीं हो लेकिन जीवन पनपने की संभावना हो। दूसरी कड़ी में वैज्ञानिकों एक ऐसे ग्रह के अध्ययन से उम्मीदें हैं जहां धातुएं तक पिघली अवस्थाओं में हैं। वैज्ञानिकों को हमारे सौरमंडल के एक ग्रह बृहस्पति या गुरु (जूपीटर) के जैसा ग्रह मिला है। इस ग्रह के वायुमंडल में पिघली हुई घातुएं मिली है। मास्कारा-2बी नाम का यह ग्रह अपने सूर्य के बहुत पास है। यह ग्रह पृथ्वी से 4.31 क्वाड्रिलियन किलोमीटर दूर है। यह शीशे जैसा ग्रह येल स्थित एक्सट्रीम प्रीसीशन स्पोक्ट्रोमीटर (एक्सप्रेस) की पहली खोज है।
वैज्ञानिक इस ग्रह की खोज से बहुत उत्साहित हैं क्योंकि यह ग्रह के अध्ययन उनकी लिए अहम हो सकता है क्योंकि इससे उन्हें उस तरह के ग्रह खोजने में मदद मिल सकती है जिनमें पृथ्वी की तरह जीवन की संभावनाएं हों। येल की खेगोलविद डेबरा फिशर का कहना है, गर्म जूपिटर ऐसी विश्लेषण तकनीक विकसित करने के लिए आदर्श लैब की तरह होती हैं जो सक्षम ग्रहों में जीवन के संकेत ढूंढे में मदद कर सकते हैं। इन ग्रहों के गुरू के जैसे होने के कारण इन्हें हॉट जूपिटर्स कहा जाता है। इस तरह का पहला ग्रह 25 साल पहले खोजा गया था। मास्कारा2बी एक खास स्पैक्ट्रोमीटर एक्सप्रेस की मदद से खोजा गया था जो एरीजोना में 4.3 मीटर लोवेल डिस्कवरी टेलीस्कोप में बनाया गया है। इसका मूल उद्देश्य पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज ही है, लेकिन सूदूर अन्य ग्रहों के बारे में खास जानकारी जुटा सकता है जो इसके उद्देश्य में उपयोगी हो सकती हैं।
ये ग्रह गुरु ग्रह की तरह गैसे से बने होते हैं लेकिन उनकी सतह का तापमान बहुत ज्यादा होता है। मासकारा2बी की सतह का तापमान 17.26 डिग्री है जो कि पानी के क्वथनांक यानि कि बॉयलिंग प्वाइंट से 20 गुना ज्यादा होता है। इसी वजह से वहां के वायुमंडल में भी ज्यादातर पिघली हुई धातुएं पाई जाती हैं।
फिशर का मानना है कि मासकारा 2बी के वायुमंडल पर वाष्पीकृत धातुओं का पाया जाना बहुत उत्साहित करने वाला वैज्ञानिक नतीजा है। इसकी वजह यह है कि वह अपने सूर्य के गुरू ग्रह के मुकाबले 100 गुना ज्यादा करीब है। एक्सप्रेस उपकरण से अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता जेन्स होएजमेकर्स को यह पता करने में कामयाबी मिली कि इस ग्रह पर सुबह और शाम को रासायानिक संरचना अलग हो जाती है। उन्होंने कहा, इन रासायानिक पड़तालों से पता चलता है कि इस वायुमंडल में किस तरह के अणु होंगे। इसके अलावा यह इनसे वायुमंडल में गैसों के प्रवाह की प्रभाविकता बारे में भी पता चल सकता है। वैज्ञानिक इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें इस अध्ययन से उन्हें किसी ग्रह के निर्माण के शुरूआती दौर के बारे में जानने में मदद मिलेगी। शोधकर्ता यह भी जान पाएंगे कि वे कौन से कारक हैं जो बात में किसी ग्रह के वायुमंडल के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। और वे यह भी जान सकते हैं कि किस ग्रह में भविष्य में पृथ्वी जैसे ग्रह बनने की ज्यादा संभावनाएं हैं।