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स्वर्ग के चपरासी से नरक का राजा अच्छा !-----बी जे पी में जाना कितना सार्थक !

स्वर्ग के चपरासी से नरक का राजा अच्छा !-----बी जे पी में जाना कितना सार्थक !

नदी के एक किनारा दूसरे किनारे को देखकर कहता काश मेरा  भी इतना सुन्दर होता ,इसी प्रकार पहले  दूसरा वाला पहले वाले को कहता ,यानी कोई सुखी नहीं ।इसी प्रकार चिड़िया कहती काश मै बादल होती तो पूरी दुनिया घूम लेती और बादल कहता काश मैं चिड़िया होती तो मैं भी पूरी दुनिया घूम लेती ।
एक महल के सामने पत्थरों का ढेर लगा था ,एक दिन एक पत्थर बोला मैं राजा के महल  मै रहना चाहता हूँ ,एक व्यक्ति ने उसकी करुण पुकार सुनकर उस पत्थर को राजा के महल की ओर फेंका ,पत्थर महल के कांच को तोड़ कर राजा के पलंग पर गिरा ,और वह प्रसन्न हो गया ।थोड़ी देर मै एक सैनिक आया और उसने उस पत्थर को उठाकर बाहर फेंक दिया ।वह उसी ढेर मै आकर   बैठ गया ।तब अन्य पत्थरों ने पूछा क्या हुआ तब वह पत्थर बोला अपनों को छोड़कर अलग रहने मै मजा नहीं आता !
कहावत भी हैं जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता हैं उसमे वह पहले गिरता हैं ।जैसा कहा भी गया हैं "गरज़ पड़ें कछु और हैं ,गरज़ सटेकछु और ,तुलसी भांवर के पडत नदी सिरावत मौर "
 और कहा भी गया हैं की चतुर कौआ ----पर ही बैठता हैं ।
यह कोई नई बात नहीं हैं ।----
इसका  मन  क्या क्षुद्र  हैं ,अथवा उच्च   उदार   ।
एक  कसौटी  हैं ।इसे  देखो  नर  -आचार   ।
क्या तुम  जानना  चाहते  हो की अमुक व्यक्ति उदारचित्त  हैं या  क्षुद्र हृदय स्मरण  रखो  की आचार  व्यवहार  चरित्र  की कसौटी  हैं ।
अपरीक्षित  नर  का अहो  ,जो करता  विश्वास  ।
दुखबीज़  बोकर  कुधी  ,देता  संतति  त्रास  
जो आदमी   परीक्षा  लिए बिना  ही दूसरे मनुष्य   का विश्वास  करता  हैं ,वह अपनी  संतति  के लिए अनेक आपत्तियों का बीज बो रहा  हैं ।
बिना ज्ञान कुल शील के ,करना परविश्वास ।
अप्रतीति फिर ज्ञात की ,दोनों    देते  त्रास ।
अनजाने मनुष्य पर विश्वास करना और जाने हुए योग्य पुरुष पर संदेह करना ,ये दोनों ही बातें एक समान अगणित आपत्तियों की जननी हैं ।
करे प्रगट तो बाहय में ,हम में प्रीती अपार ।
पर भीतर कुछ भी नहीं ,हैं अनिष्ट आसार ।
उन व्यक्तियों को मैत्री विघातक ही होती हैं जो दिखाने को तो यह दिखाते हैं कि वे न जाने कितना प्रेम करते हैं ,लेकिन उनके हृदय में प्रेम नहीं होता कहता तो कुछ अन्य हैं ,करे और ही रूप ,
स्वप्ने में भी मित्रता ,ऐसे  कि विषरूप ।
जो व्यक्ति कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं उनकी मित्रता कि कल्पना स्वप्न में भी करना बुरा हैं ।
जितनी जल्दी पद प्राप्ति कि छटपटाहट थी वह उतनी दूर होती जा रही हैं ।जहाँ उनको अपनी पार्टी में बहुत वरिष्ठतम पद पर होते हुए भी प्रतिष्ठा भी प्राप्त थी पर लोभ के कारण पार्टी बदली और आज उन्हें पिछली सीट पर बैठना पड़ रहा हैं ।इतनी सहन शक्ति कोन्ग्रेस्स में रहकर करते तो संभवतः आज प्रदेश कि स्थिति अलग होती ।बी जे पी में फूटबाल बनकर प्रधान सेवक ,गृह मंत्री ,पार्टी अध्यक्ष ,रक्षा मंत्री ,मुख्य मंत्री के यहाँ वहां चक्कर लगाना पड़ रहा हैं और उनके कारण छोड़े गए विधायकों को जो मानसिक ,शारीरिक ,आर्थिक, सामाजिक क्षति उठानी पड़ रही हैं ।
 धोबी का कुत्ता घर का ना घाट जैसे स्थिति तो नहीं हो रही हैं और उनके मुखिया तो पहले से ही सभी प्रकार के सुविधा भोगी हैं पर हाँ यह गलती जरूर माननी चाहिए कि जिस दाल पर बैठे से उसी को काटा यानी होशियार कालिदास जैसी स्थिति तो नहीं बन गयी श्रीमंत की ।
(लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन) 
 

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