आज से जब आधे भारत में ’लॉकडाउन‘ में ढील लागू की गई तो हर तरफ से एक ही सवाल उठाया जा रहा है कि, क्या देश के इतने बड़े (करीब 40 प्रतिशत) भाग में लॉकडाउन‘ में ढील देने का फैसला क्या वर्तमान हालातों मे उचित है ? शहर कस्बों के साथ राष्ट्रीय राजमार्गो पर लोगो और वाहनों की रैलम पैल क्या फिर से नये खतरों को आमंत्रण नही देगी ? आज केन्द्र सरकार (गृह मंत्रालय) की नीति किसी के भी समझ मे नही आ रही है आज एक ओर जहा देश के हर राज्य के एक बडे भागो में ’लाकडाउन‘ में ढील शुरू हो गई, वहीं केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारो को निर्देशित किया कि लाकडाउन के दौरान कोई रियायत नही बरती जाए, आज एक ओर जहॉ महाराष्ट्र जैसे शिक्षित राज्य में लोगो की भीड पुलिसकर्मियो के सामने निहत्थे साधु संतो की हत्या कर रही है, वही दूसरी ओर देश में कोरोना पीडितों का आंकडा तेजी से आगे बढ रहा है, दूसरी बार जब ’लाकडाउन‘ को आगे बढाने की घोषणा की गई इसके बाद से अब तक सिर्फ एक सप्ताह में कोरोना पीडितो की संख्या तिगुनी हो गई है, अब यह आंकडा जहॉ बीस हजार का अंक छूने की तैयारी कर रहा है वहीं देश में मृतको की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्वि हो रही है, अब ऐसी स्थिति में ’कोरोना अप्रभावित क्षैत्र‘ के नाम पर देश के करीब आधे हिस्से को ’लॉकडाउन‘ के प्रतिबंधो से मुक्त कर देना कहा की समझदारी है ? राष्ट्रीय व राज्यमार्गो पर स्थित ढाबे कोरोना फैलाने में सहायक नही है ? क्या इन मार्गो पर चलने वाले हजारो-लाखो ट्रको के ड्रायवर कोरोना मुक्त है ?
वैसे पिछले करीब एक महीने के लॉकडाउन‘ का आम अनुभव यह रहा कि आम नागरिक ने तो सरकार के प्रतिबंधो को पूरा ईमानदारी से पालन किया किन्तु राज्य व जिला प्रशासनो ने अपने धर्म का ईमानदारी से पालन नही किया, जिसके कारण से लोग अपनी दैनंदिनी वस्तुओं के लिए तरस गए और अपने आपको ’नरजबंद‘ कैदी समझने लगे, यद्यपि आज राष्ट्रीय ’लाकडाउन‘ के दौरान अपनी उपलब्धियो का जो ढिंढोरा केन्द्र सरकार पीट रही है, वह आम जनता के तकलीफ भरे सहयोग के कारण उसे प्राप्त हुई, किन्तु क्या कभी मध्यप्रदेश में अफसरो द्वारा संचालित सरकार ने आम आदमी दर्द जानने या उसे महसूस करने की कौशिश की? जो भी हो वक्त गुजर अभी इस कैद के आठ दिन और शेष है,ये भी इसी तरह गुजर जाएगे, किन्तु फिर वही सवाल कि कोरोना की इस विकट स्थिति में देश के एक बडे भाग को ’लाकडाउन‘ में छूट देकर क्या फिर से ’संकट‘ को निमंत्रण देना ठीक है ?
सबसे अहम और बडा सवाल यहॉ यह पैदा होता है कि केन्द्र सरकार आखिर जिस ’टास्क फोर्स‘ या जॉच समिति के सुझाव पर यह आत्मघाती फैसला लिया, क्या इसका कोई राजनीतिक कारण है, या यह एक स्थिति सामान्य बताने का प्रयोग है ? एक और केन्द्र व राज्य सरकारो द्वारा अफसरशाही की सिफारिशों पर यह कहा जा रहा है कि ’लाकडाउन‘ के कारण पूरा देश नए खतरे से बच गया, दूसरी ओर उसी के साथ उन क्षैत्रो में ’लाकडाउन‘ में ढील दी जा रही है, जहॉ अभी कोरोना नही पहुचा है, तो इस ढील का क्या अर्थ निकाला जाए ? क्या अब इन ढील वाले क्षैत्रो से अशुभ खबरें आना शुरू नही जाएगी ?
यह सही है कि इस चालीस दिन लम्बे ’लाकडाउन‘ के कारण देश की आर्थिक स्थिति डॉवा डोल हुई, बैरोजगारी व उसके कारण भूखमरी बडी किन्तु क्या इस समस्या से निपटने का सक्षम केन्द्र व राज्य सरकारों के पास निपटने का कोई कारागर उपाय नही था ? क्या केन्द्र व राज्य सरकारे मुम्बई के अंधेरी स्टेशन व देश में दो दर्जन स्थानो पर अप्रवासी मजदूरो की भीड देखकर डर गई या इनकी बेरोजगारी देखकर सरकारो को दया आ गई ? जो भी कारण रहा हो, किन्तु अब ईश्वर से यही प्रार्थना करना चाहिये कि लाकडाउन से ढील वाले क्षेत्रो से कोई अशुभ समाचार न आए और बिना ’लाकडाउन‘ वाले क्षैत्र भी संकट विहीन रहे।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता)
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महामारी के बीच सवाल अभी ’लॉकडाउन‘ में छूट का क्या औचित्य........?