उत्साह से भरी कांग्रेस इस आम चुनाव में अपनी बेहतर संभावानओं को लेकर कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है। यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बार को लोकसभा चुनाव में अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। मालूम हो कि नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात के वड़ोदरा सीट के साथ-साथ काशी के रण से उतर कर पूर्वांचल से लेकर बिहार तक को साधा था। इसी तर्ज पर राहुल ने वायनाड को चुना है। इसके जरिए केरल ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण भारत को साधने की रणनीति मानी जा रही है। ज्ञात हो कि कांग्रेस ने रविवार को आधिकारिक तौर पर ऐलान कर दिया है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी इस बार के लोकसभा चुनाव में दो सीटों से चुनावी मैदान में उतरेंगे। राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी से चुनाव लड़ने के साथ-साथ दक्षिण भारत को साधने के उद्देश्य से कांग्रेस के मजबूत किले के रूप में मशहूर वायनाड सीट से भी किस्मत आजमाएंगे।
कांग्रेस इसे जहां उत्तर भारत के साथ-साथ साउथ को साधने का दांव बता रहा है। वहीं, भाजपा अमेठी में राहुल को हार का डर बताकर माहौल बना रही है। इतना ही नहीं भाजपा राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले को उनके ननिहाल इटली से जोड़ते हुए ईसाई प्रेम बताया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा, राहुल गांधी अमेठी में असहज, असुरक्षित और असहाय महसूस कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने वायनाड सीट को अपने 'एथनिक प्रोफ़ाइल' की वजह से सुरक्षित मानते हुए वहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया है।'
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी गुजरात के वड़ोदरा सीट के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के वाराणसी से मैदान में उतरे थे। भाजपा को इसका फायदा भी मिला था। भाजपा ने गुजरात की सभी सीटें जीतने के साथ-साथ बिहार और उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया था। इसी तर्ज पर राहुल गांधी ने यूपी के साथ-साथ केरल के मैदान में उतरने फैसला किया है। अमेठी और रायबरेली की तरह ही वायनाड लोकसभा सीट भी कांग्रेस की दबदबे वाली सीट मानी जाती है। यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद राजनीतिक वजूद में आई। यह सीट कन्नूर, मलाप्पुरम और वायनाड संसदीय क्षेत्रों को मिलाकर बनी है। कांग्रेस नेता एमआई शनवास पिछले दो बार से सीपीआई को मात देकर सांसद बने थे। ये सीट ऐसी है जहां भाजपा कभी रेस में भी नहीं रही। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए काफी सुरक्षित मानी जा रही है।
माना जा रहा है कि वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का फैसला राहुल गांधी और कांग्रेस ने दक्षिण भारत में पार्टी को मजबूत करने के मद्देनजर लिया गया है। कांग्रेस वायनाड सीट के जरिए केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु को साधने की रणनीति मानी जा रही है। दरअसल दक्षिण भारत में ऐसी लगातार मांग उठती रही है कि दिल्ली की सत्ता के सिंहासन पर उनका प्रतिनिधित्व हो। माना जा रहा है कि कांग्रेस इस दांव से दक्षिण भारतियों का दिल जीतना चाहती है। राहुल इस सीट से चुनावी मैदान में उतरकर पूरे दक्षिण को साधने की रणनीति के तौर पर कांग्रेस देख रही है। देश में नरसिम्हा राव देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे जो दक्षिण भारत से आते थे। इसके बाद एचडी देवगौड़ा बने थे। दिलचस्प बात ये है कि दोनों के पीएम बनने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही है। 1991 में कांग्रेस सरकार बनी तो नरसिंहा राव पीएम बने और 1996 में कांग्रेस के समर्थन से एचडी देवगौड़ा पीएम चुने गए।
राहुल गांधी दक्षिण के रण में उतरकर समीकरण साधने की रणनीति रही है। एक दौर में दक्षिण भारत कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन वक्त के साथ छत्रपों ने कांग्रेस की जमीन को कब्जा लिया है। ऐसे में राहुल दक्षिण के सियासी रण में खुद उतरकर अपनी सियासी जमीन को वापस पाने की है। वायनाड लोकसभा सीट मुस्लिम और ईसाई बहुल मानी जाती है। वायनाड में 49 फीसदी हिंदू हैं तो 51 फीसदी मुस्लिम और ईसाई आबादी है। वायनाड संसदीय सीट के तहत सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इस संसदीय क्षेत्र में मनंतावडी, तिरुवंबडी, वानदूर, सुल्तानबथेरी, एरनाड, कलपत्ता और निलंबूर विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें तीन वायनाड जिले की, 3 मल्लपुरम की और 1 कोझीकोड़ जिले की है। वायनाड और मल्लपुरम इलाके में कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की मजबूत पकड़ मानी जाती है। यही वजह है कि पिछले दो लोकसभा चुनाव से कांग्रेस लगातार जीत दर्ज कर रही है। ऐसे में राहुल के लिए वायनाड की राह में बहुत ज्यादा दिक्कतें नहीं होंगी।
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वायनाड के जरिए केरल ही नहीं पूरे दक्षिण भारत को साधने की रणनीति है राहुल गांधी की