भारतीय सिनेमा के राजघराने में जन्में हिन्दी सिनेमा के सेवक ऋषि कपूर का जन्म मुम्बई में सिनेमा की चमक-दमक के बीचों-बीच हुआ। रंगमंच से उनका लगाव बचपन से इस सिद्धांत से था कि पिता के पहले फिल्मी प्रस्ताव से जीवन के अन्तिम क्षण तक किश्मत से आगे मेहनत को रखा। दुनिया को अन्तिम वक्त भी किस्मत से ज्यादा मेहनत का जुनूनी सबक देकर गये। पृथ्वीराज कपूर के वटवृक्ष की तीसरी पीढ़ी के राजकपूर और कृष्णा मलहोत्रा के दूसरे बेटे थे। प्यार से सब इन्हें चिन्टू बुलाते थे। सिनेमा की दुनिया में कपूर फैमिली एक अलग ही पहचान रखती है। फिल्मी दुनिया के राजकुमार होते हुए भी अभिनेता बनने का जुनून चिन्टू को बचपन से ही स्वयं को सवारने-निखारने को प्रेरित करता रहा। पिता राजकुमार ने 1970 की फिल्म ’मेरा नाम जोकर’ में बाल कलाकार के रूप में दुनिया के इस संगीन पर्दे से रूबरू कराया। अपनी बाल प्रतिभा से सबका दिल मोह कर सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्टृीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किया। हालांकि यंग स्टार के रूप में किशोरों के दिलों के राजकुमार अपनी फिल्म बॉबी से बने। जिसने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया। ऋषि कपूर ने कठिन परिश्रम से भारतीय सिनेमा के सेवक के रूप में जो मुकाम हासिल किया वह उनकी असाधारण प्रतिभा का परिचय देती है।
ऋषि कपूर ने 1973 से 2000 के बीच लगभग 92 फिल्मों में काम किया। सिनेमा की दुनिया में रोमांटिक अभिनेता के रूप में चमकते सितारे बनकर उभरे। इस दौरान उन्होंने एक के बाद एक कई हिट फिल्में की। खेल-खिलाडी - 1975 में कभी कभी - 1976 में अमर अकबर एंथोनी -1977 में कर्ज - 1980 और चांदनी - 1989 में। हर फिल्म में एक नया किरदार कभी पुत्र, कभी प्रेमी, कभी पति, कभी दोस्त, के रूप में अपना हर किरदार को एक अलग भूमिका में सवारने की कोशिश की। फिल्मों में उनके द्वारा पहने गये स्वेटर्स उस दौर के लोगों की पसंद बन गये। ये वो दौर था जब लाखों युवाओं ने उन्हें देख सिनेमा की दुनिया का रूख किया, तो लाखों ने अपने वेशभूषा में ऋषि कपूर को शामिल किया। 2000 के दशक में भी उन्होंने कई हिट फिल्में लव आज कल; 2009 में अग्निपथ ;2012 और मुल्क; 2018 में अपने बेहतरीन अनुभव का परिचय दिया। दो दूनी चार फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला। कपूर एण्ड सण्स में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीता। 2008 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। ऋषि कपूर की अन्तिम फिल्म द बॉडी 2019 में आयी। एक अभिनेता के रूप में लोगों की दिलों में छाप छोडने के साथ ही एक समाज सेवक के रूप में भी उनकी गहरी रूची दिखलायी देती थी।
अभी हाल ही में दुनिया से कोरोना की जंग में उन्होंने भी अपनी मौजूदगी दर्ज करायी थी। लाकॅडाउन में देश के योद्धाओं की हौसला अफजाई के लिए बालकनी से थाली बजाती हुई तस्वीर सबने देखी थी। लोगों से इन योद्धाओं का सम्मान करने की अपील उनकी समाजिक चिन्ता का बयान करती है। देश और दुनिया की फिक्र अकसर उनके बेबाक व्यक्तित्व में दिखाई देती रहती थी। अकसर अपनी बात सोशल मीडिया के माध्यम से रखते रहे हैं। ऋषि कपूर ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा का इतिहास बदलते हुए देखा भी है और कई बेहतरीन इतिहास बनाये भी हैं। बेशक ऋषि कपूर एक प्रतिभाशाली परिवार में जन्मे थे, लेकिन दुनिया में अपनी एक सफल पहचान उन्हांेने अपनी मेहनत से ही हासिल की। दुनिया ऋषि कपूर के जिस अभिनय की कायल थी उसके लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया था। दुनिया को अलविदा करते समय भी वे किस्मत से ज्यादा मेहनत पर भरोसा करते दिखाई दिये। भारतीय सिनेमा में उनकी अभिनय की कला साधना बन गई। उन्होंने सोलो लीड अभिनेता के रूप में 51 फिल्मों में अभिनय किया। अपनी पत्नी के साथ 12 फिल्मो में काम किया। उनकी छवि अपने दौर में एक चॉकलेटी अभिनेता के रूप में रही, लेकिन उम्र के अलग-अलग दौर में दुनिया को अपने निगेटिव और पाॅजिटव किरदार से दो चार कराते रहे। अपनी जीवनी खुल्लम खुल्ला में उन्होंने बेबाक तरीके से अपनी दिल से जीने के अन्दाज को रखा। बॉबी में एक चॉकलेटी हीरो का किरदार जितना लोगों के दिलो-दिमाग पर असर छोडता है, तो उतना ही बॉडी के कडक पुलिस ऑफिस का किरदार उनके न थकने वाला सफर लोगों के यादों में सदियों रहने वाला है। जीवन के पडाव में उन्होंने कई असफलताएं भी देखी लेकिन उनके चेहरे की मुस्कुराहट उनके जीवन में नयी उर्जा का संचार करती हुई आगे का सफर तय करती ही नज़र आयी शायद उनके परिवार की यह इच्छा की उन्हें मुस्कुराते हुए ही याद किया जाए, ऋषि कपूर की मुस्कुराहट को हमेशा तरोताजा बनाये रखने के लिए ही है। ऋषि कपूर भारतीय समाज और सिनेमा की दुनिया में हमेशा मुस्कुराएगे।
(लेखिका- डा. नाज परवीन)
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भारतीय सिनेमा का सेवक ऋषि कपूर