युवाओं और बुजुर्गों में डिप्रेशन की समस्या की चर्चा आम है लेकिन क्या आपको पता है कि छोटे बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं? बच्चे अकसर चिल्लाते, रोते और लड़ते हैं। ऐसे में पैरंट्स उन्हें डांट देते हैं। लेकिन क्या कभी आपने अपने बच्चों के ऐसे बर्ताव का कारण जानने की कोशिश की है? बच्चों के अंदर भी कई तरह के नेगेटिव इमोशन्स होते हैं लेकिन वे इसे ठीक तरह से जाहिर नहीं कर पाते हैं और इस तरह का बर्ताव करते हैं। पैरंट्स अकसर इसे नजरअंदाज करते हैं। इससे समस्या और बढ़ जाती है।फोर्टिस द्वारा किए गए एक सर्वे में 65 फीसदी काउंसेलर्स का मानना है कि स्कूल जाने वाले बच्चों में मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता नहीं है। उनके लिए जानकारी का प्राथमिक माध्यम गूगल सर्च इंजन ही है। 91 फीसदी लोगों ने कहा कि मेंटल हेल्थ को स्कूलों में पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता है। 96 फीसदी लोगों ने माना कि मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता को स्कूल के करिकुलम में शामिल किया जाना चाहिए।29 फीसदी काउंसेलर्स ने कहा कि बच्चे जब परेशान होते हैं तो वे इसे अपने तक ही रखते हैं और इस बारे में बात नहीं करते हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि बच्चों में छोटी उम्र में ही मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूक करना चाहिए जिससे उन्हें जब भी जरूरत हो, वे इस बारे में बात कर सकें। स्कूलों में छोटे बच्चों के प्रति अव्यवहार की घटनाएं काफी आम हो गई हैं। ऐसे में उनको यह कॉन्सेप्ट समझाना और भी जरूरी है और इसकी जिम्मेदारी स्कूल की है। बच्चों को न सिर्फ डिप्रेशन के प्रति जागरूक करना है बल्कि उन्हें इससे लड़ने के लिए भी तैयार करना है। यह काम तभी पूरा हो सकता है जब स्कूल इसके प्रति सेंसिटिव हों और पैरंट्स बच्चों को अपनी बातें खुलकर कहने का स्पेस दें। डिप्रेशन आजकल युवाओं में एक बड़ी समस्या है। हमारे आसपास कई ऐसे लोग होते हैं जो डिप्रेशन का शिकार हैं लेकिन किसी को भी इस बात का पता नहीं होता है। वे अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। इस बारे में कई सिलेब्रिटी भी बात कर चुके हैं।