नई दिल्ली । दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में कोरोना के ऐसे पॉजिटिव मरीज जिन्हें डायलिसिस की दरकार है, उन्हें एक से दूसरे अस्पताल में भटकना पड़ रहा है। इस परिवार के सदस्य पवन का कहना है कि इनके पिता को अंबेडकर अस्पताल के पॉजिटिव डॉक्टरों के संपर्क में आने की वजह से कोरोना हो गया। पिता को डायलिसिस की भी जरूरत थी। पहले सफदरजंग ने एडमिट नहीं किया। फिर 1 मई को एलएनजेपी अस्पताल में किसी तरह एडमिशन मिला, लेकिन 10 दिन में डायलिसिस हुआ और 10 मई को ही उनकी मौत हो गई। इसी तरह यूपी के रामपुर से आए सलमान भी अपनी कोरोना पॉजिटिव बहन नर्गिस के इलाज के लिए रोए जा रहे हैं।
हालांकि दिल्ली सरकार का दावा कि दिल्ली में 1626 अस्पताल कोरोना का टेस्ट कर रहे हैं लेकिन डायलिसिस एक महंगी प्रक्रिया है और प्राइवेट अस्पतालों में एक बार डायलिसिस करवाने का खर्च हज़ारों में आता है। सरकार के अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा वाले बिस्तर सीमित हैं। दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल में केवल 3 डायलिसिस मशीनें चल रही हैं। ऐसे में हफ्तों के इंतजार के बाद ही मरीज का नंबर आ पा रहा है। आदर्श नगर से अपनी मां का इलाज कराने आए एक बेटे को शिकायत है कि डायबिटीज़ के मरीजों को वक्त पर खाना और इंसुलिन भी नहीं मिल पा रहा है। अगर देश की राजधानी के अस्पतालों में मरीज इलाज और टेस्ट के लिए इस तरह भटक रहे हों तो बाकी शहरों की हालत समझना मुश्किल नहीं है।
रीजनल नार्थ
कोरोना के कारण दूसरी बीमारियों के मरीज हो रहे परेशान