लंदन । आमतौर पर बच्चे शरारती तो होते ही हैं। हमारे बच्चे की यही शरारत कहीं उसकी पर्सनैलिटी पर तो हावी नहीं हो रही है। जरुरत से ज्यादा शरारती बच्चे एक मानसिक समस्या का शिकार होते हैं, जिसे मेडिकल की भाषा में 'अटेंशन डिफिशिऐंट हाइपरऐक्टिव डिसऑर्डर' कहा जाता है। आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर किसी बच्चे के लिए उसकी शरारतें किस तरह उसके मानसिक विकास में बाधा डाल सकती हैं? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एकाग्रता की कमी के चलते बच्चा किसी एक काम पर अपना ध्यान नहीं लगा पाता है और इस कारण अपनी योग्यता का सही उपयोग नहीं कर पाता है। यदि बचपन में ही बच्चे की इस समस्या पर ध्यान ना दिया जाए तो यह दिक्कत उसे टीनऐज तक परेशान कर सकती है। जबकि कुछ बच्चों में यह दिक्कत 25 साल की उम्र तक भी बनी रह सकती है। यानी जिस उम्र में बच्चा अपने करियर पर फोकस करता, उस उम्र में । अटेंशन डिफिशिऐंट हाइपरऐक्टिव डिसऑर्डर के कारण बच्चा किसी भी एक काम पर एक बार में ध्यान ही नहीं दे पाता है।
अटेंशन डिफिशिऐंट हाइपरऐक्टिव डिसऑर्डर (एडीएचडी) बच्चे की नई चीजें सीखने की क्षमता को बाधित करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चा जब किसी एक काम को कर रहा होता है तो वो उस पर कुछ मिनट के लिए ही ध्यान लगा पाता है और फिर उसका मन किसी दूसरे काम को करने के लिए होने लगता है। जैसे ही बच्चा उस काम को करना शुरू करता है, उसका ध्यान किसी तीसरे काम की तरफ चला जाता है... हम सोचते हैं कि बच्चा शैतानियां कर रहा है लेकिन हकीकत तो यह है कि वह मानसिक रूप से बेचैन हो रहा होता है। जिन बच्चों में एडीएचडी की दिक्कत होती है उनमें और जो बच्चे शरारती होते हैं उनमें, बहुत मामूली सा फर्क होता है। लेकिन इस फर्क को पहचानना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि अगर हम यहां चूक गए को हमारी इस भूल का खामियाजा बच्चे को भुगतना पड़ेगा। आमतौर पर बच्चे में 3 से 4 साल की उम्र में इस बीमारी के लक्षण नजर आने लगते हैं। खास बात यह है कि ये लक्षण ज्यादातर बच्चों में 12 से 13 साल की उम्र तक बने रहते हैं। जबकि कुछ मामलों में ये 25 साल की उम्र तक व्यक्ति के साथ रहते हैं।
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जरुरत से ज्यादा शरारती तो नहीं है आपका बच्चा -हो सकते हैं इस मानसिक समस्या का शिकार