संत नामदेव के जीवन से जुड़ी यह चर्चित कथा है। उनके पिता दामाशेट दर्जी थे। वह चाहते थे कि नामदेव उनका कारोबार आगे बढ़ाएं पर नामदेव तो दिन भर मंदिर में कीर्तन करते रहते थे। इससे दामाशेट दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नामदेव को कपड़ों का एक गट्ठर सौंप दिया और कहा कि इसे वह बाजार में बेच आएं। नामदेव बाजार पहुंचे। वहां गट्ठर सामने रख विट्ठल के ध्यान में मग्न हो गए। सभी की कमाई हुई, पर नामदेव खाली ही रहे।
वहीं पास में खेत में कुछ पत्थर पड़े थे। उन्होंने पत्थरों को कपड़ों से ढक दिया और एक बड़े पत्थर से कहा कि आठ दिन बाद फिर आऊंगा, पैसे दे देना, ताकि पिता को हिसाब दे सपूं। पिता ने पूछा तो कहा कि आठ दिन बाद पैसे मिलेंगे। आठ दिन बाद नामदेव उस बड़े पत्थर के पास गए। पैसे मांगने लगे। पर वह कहां से देता! उन्होंने गुस्से में उसे उठाया और पंढरपुर के विट्ठल मंदिर ले आए। बोले- यहीं बापू को जवाब दे देना। दामाशेट बौखला रहे थे- कपड़ों के बदले पत्थर! नजदीक आकर देखा तो वह पूरा पत्थर सोने का हो गया था। यह समाचार सब ओर फैल गया।
स किसान के खेत का पत्थर था, वह आकर सोने का पत्थर मांगने लगा। नामदेव ने अपने कपड़े के पैसे मांगे व पत्थर उसे दे दिया। घर जाकर किसान ने देखा कि वह तो फिर पत्थर बन गया। वह गुस्से में नामदेव जी के घर वह पत्थर रख गया। आज भी उस पत्थर की पूजा नामदेव के मंदिर में होती है।
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(चिंतन-मनन) पत्थर की पूजा