- लॉक डाउन में 21 राज्यों को 1 लाख करोड़ की आय का नुकसान
- कोरोना आपदा में अरबों रुपए अलग से खर्च करने पड़ रहे हैं राज्यों को
- केंद्रीय से मिलने वाली योजनाओं की राशि में भी कटौती से राज्य भारी संकट में
लाकडाउन के कारण देश के 21 बड़े राज्यों को लगभग एक लाख करोड़ रुपए का नुकसान पिछले 40 दिनों में उठाना पड़ा है। इंडिया रेटिंग ने जो रिपोर्ट जारी की है। उसके अनुसार विमानन, पर्यटन, पोर्टल, हॉस्पिटैलिटी उत्पादन चेन आपूर्ति कारोबार और अन्य गतिविधियां सभी राज्यों में 40 दिन से अधिक हो गए हैं, पूरी तरह ठप्प पड़ी हुई हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार गोवा, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों की 76 फ़ीसदी से लेकर 65 फीसदी आय, उनके ही राज्य से अन्य स्रोतों से होती थी। पिछले 40 दिनों से सारा कारोबार ठप्प होने के कारण, राज्य काफी बड़े आर्थिक संकट में आ गए हैं। उल्लेखनीय है, गुजरात राज्य के बजट में 76 फ़ीसदी आय, तेलंगाना में 75.6 फ़ीसदी, हरियाणा में 74.7,फ़ीसदी कर्नाटक की 71.4 फ़ीसदी, तमिलनाडु की 70.4 फ़ीसदी, महाराष्ट्र की 69.8 फ़ीसदी, केरल की 69.6 फ़ीसदी, गोवा की 66.9 आय राज्य के स्वयं के स्त्रोत से होती थी। लॉक डाउन के कारण सारी गतिविधियां बंद होने के कारण यह बड़े राज्य भारी आर्थिक संकट में फंस गए हैं।
केंद्र सरकार द्वारा पिछले 3 माह से राज्यों को योजनाओं का पैसा कटौती करके भेजा जा रहा था। जीएसटी के नुकसान की राशि केन्द्र द्वारा नहीं दी जा रही है। जिसके कारण देश के सभी राज्यों की आर्थिक स्थिति दय से दयनीय हो गई है। कोरोनावायरस के संक्रमण को देखते हुए सभी राज्यों को आपदा प्रबंधन के कार्यक्रम भी चलाने पड़ रहे हैं। जिसके कारण प्रत्येक राज्य को अरबों रुपए कोरोनावायरस के आपदा प्रबंधन में खर्च करना पड़ रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन के लिए कोई भी राशि राज्यों को अभी तक नहीं दी गई है। जिसके कारण सभी राज्य सरकारें बड़े आर्थिक संकट से जूझ रही हैं।
केंद्र सरकार ने राज्यों के कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाकर उन्हें वित्तीय सहायता देने का जरूर निर्णय लिया है। अधिकांश राज्यों के ऊपर पहले से ही भारी कर्ज है। उन्हें अपनी आय का 10 से 20 फ़ीसदी तक ब्याज के रूप में चुकाना पड़ रहा है। कर्ज लेकर पिछले डेढ़ माह में राज्य सरकारों ने किसी तरीके से अपने खर्च करके स्थिति को बनाए रखा है। राज्यों के ऊपर ठेकेदारों सप्लायरों के अरबों रुपए दिया जाना हैं। जो पिछले कई माह से लंबित पड़े हुए हैं। कई राज्यों में ठेकेदारों और सप्लायरो को भुगतान नहीं करने के कारण सभी कामकाज बंद हो गए हैं। यही हालत नगरीय निकायों की भी बनी हुई है। जिसके कारण राज्य सरकारें अब केंद्र के ऊपर आर्थिक सहायता के लिए दबाव बना रही हैं।
भाजपा शासित राज्यों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। जबरा मारे और रोउन ना दे कि स्थति भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की है। यह राज्य खुलकर अपनी बात और पीड़ा केंद्र सरकार को बता भी नहीं पा रहे हैं। राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार को सारी स्थिति से अवगत कराते हुए, पिछले 3 माह से वित्तीय सहायता दिए जाने की मांग की जा रही है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। वह राज्य खुलकर केंद्र के ऊपर दबाव बना रहे हैं। इसमें पंजाब के अमरिंदर सिंह, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, छत्तीसगढ़ सरकार के भूपेश बघेल इत्यादि केंद्र से आर्थिक सहायता देने की लगातार मांग कर रहे हैं। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री यह मांग भी केंद्र से नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण भाजपा शासित राज्यों में भाजपा के खिलाफ जनता में असंतोष बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री फ्लैगशिप योजनाओं की राशि भी राज्यों को नहीं मिल पा रही है। इसके साथ ही सांसदों के द्वारा अपने संसदीय क्षेत्र में जो राशि खर्च की जाती थी। वह भी बंद कर दी गई है। जिसके कारण भाजपा शासित राज्यों में, जब केंद्र और राज्य में दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। ऐसी स्थिति में अब ठीकरा किसी और के सिर में फोड़ने की स्थिति भी नहीं है। जिसके कारण भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री काफी हैरान-परेशान हैं। ना तो वह अपनी बात खुलकर कह पा रहे हैं। नाही अपने प्रदेश की जनता को संतुष्ट कर पा रहे हैं।
लॉक डाउन का पीरियड बहुत लंबा हो जाने के कारण आर्थिक व्यवस्था की जो चेन बनी हुई थी। वह पूरी तरह खत्म हो गई है। ऑनलाइन लेनदेन हो जाने के कारण 1 रुप्या जो एक माह में चलकर 100 से 200 रुप्ये बन जाता था। इन 50 दिनों में वह 1 रुप्या ही रह गया है। जिसके कारण अर्थव्यवस्था की चेन पूरी तरह से टूटकर बिखर गई है। अब यह चैन पुनः बनने में अर्थशास्त्रियों के अनुसार कई माह लग सकते हैं। राज्य सरकारों के खर्च जिनमें वेतन भत्ते पेंशन और विभिन्न योजनाओं और विकास कार्यों के लिए जो राशि न्यूनतम जरूरत में शामिल थी। वह राज्यों के पास नहीं है। इस कारण से अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है, जब तक केंद्र एवं राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था का प्रवाह आम जनता तक भेजने का प्रयास नहीं करेंगी तब तक आर्थिक संकट से निपट पाना बहुत मुश्किल होगा।
कोरोनावायरस का जो भय पिछले 50 दिनों में आम जनों के बीच में डाल दिया गया है। उससे सबसे ज्यादा आर्थिकी प्रभावित हुई है। अब लोग कम से कम खर्च करने की सोच बना रहे हैं। कोरोना वायरस का संक्रमण कब तक चलेगा इसको लेकर आम आदमी भयाक्रांत है। वह अपने जीवन भर की बचत नगदी के रूप में अपनी हैसियत के अनुसार अपने घरों में सुरक्षित के रूप में रख रहा है। खर्च करने के कारोबार में मांग घट रही है। पिछले वर्ष में हिंदू और मुसलमानों के बीच में जो दूरियां बनी थी, वह दूरियां कोरोनावायरस के संक्रमण से दूर होती नजर आ रही हैं। अब लोग यह कहने लगे हैं, भूख प्यास और कोरोना वायरस से बचेंगे, तो जिंदा रहेंगे। कोरोना की बीमारी ना हिंदू देख रही है, ना मुसलमान। ऐसी स्थिति में हिंदू मुस्लिम के बीच में जो भय पैदा किया गया था। उसका स्थान अब कोरोनावायरस में ले लिया है। इसका असर भारत की 30 करोड़ जनता जो दूसरे राज्यों में जाकर काम करती थी। वह अपने घर पैसे भेजती थी। 50 दिन के लाकडाउन में जब यह गरीब और निम्न आय वर्ग के लोग पैदल ही अपने घरों के लिए निकले। इसमें हिंदू मुस्लिम का जो भय उनके मन में था, वह खत्म हो गया। इन दोनों वर्गों ने कठिन समय में एक दूसरे की मदद करके अपने आत्मीय सौहार्द्र को काफी बढ़ा लिया है। राजनीतिक दलों द्वारा पिछले वर्षों में हिंदू मुस्लिम का जो ध्रुवीकरण तैयार किया गया था। कोरोना वायरस के भय ने उसको भी काफी कमजोर कर दिया है। जो प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे, तो इनके बीच हिंदू मुस्लिम का भेद खत्म हुआ है। इनके बीच एक नई आत्मीयता अपने-अपने राज्यों में लौटते वक्त देखने को मिली है। जो भविष्य में एक बहुत बड़े परिवर्तन का संकेत भी है।
(लेखक-सनत जैन)
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